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रविवार, 31 जुलाई 2011

मिठाईलाल इंदौरी


बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ,
आदमी हूँ और मिठाई से प्यार करता हूँ।
मिल जाए वह गर मुझे कहीं अकेले में,
झट से लपक कर डालता हूँ तपेले में।
देखते ही उसको मुँह में लार आती है,
भरी महफिल में भी नियत डोल जाती है।
एक साथ तब दो-दो पर मैं वार करता हूँ,
आदमी हूँ और मिठाई से प्यार करता हूँ।
डायबिटीज का खौफ गर कोई दिखाता है,
मैं नहीं डरता मुझे बचना भी आता है।
डाक्टर की गोली से उस पर वार करता हूँ,
आदमी हूँ और मिठाई से प्यार करता हूँ।
हफ्ते में एक बार जब सराफा जाता हूँ,
रबड़ी में डाल कर गुलाबजामुन खाता हूँ।
पैसे नहीं हो तो लाला से उधार करता हूँ,
आदमी हूँ और मिठाई से प्यार करता हूँ।
(मनोज कुमारजी माफ करें)

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