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रविवार, 6 मार्च 2016

पथरी का काल पत्थरचट्टा


पथरी रोग इन दिनों बहुतायत से हो रहा है। गलत आहार इसके लिए बहुत कुछ जिम्मेदार है। आयुर्वेद में पथरी का एक अच्छा और आसान उपचार है पत्थरचट्टा। इसे पर्णबीज, हिमसागर, भस्मपथरी, पाषाणभेद और पणपुट्टी के नाम से भी जानते हैं। यूनानी चिकित्सा में इसे जख्मेहयात कहते हैं, क्योंकि यह पौधा पथरी के अलावा जख्म ठीक करने में भी लाजवाब है। इसका अंग्रेजी
नाम है bryophyllum pinnatum है। मराठी में पानफुटी और घायमारी कहते हैं। पानफुटी नाम शायद इसलिए पड़ा होगा, क्योंकि इसके पत्ते को ही तोड़ कर मिट्टी में लगा दो, तो उसमें से जड़ें निकल कर नया पौधा तैयार हो जाता है। पथरी के अलावा यह स्त्रियों के प्रदररोग (ल्युकोरिया) और पुरुषों के प्रमेहरोग (गनोरिया) में भी फायदा करता है। इसके सेवन से किडनी और गालब्लडर दोनों की पथरियां गल कर निकल जाती है। यह पथरी के निर्माण की प्रक्रिया को भी दुरुस्त करता है। अर्थात इसके दो-तीन पत्ते रोज चबाते रहें तो दोबारा पथरी नहीं बनती। इससे उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर) में भी लाभ मिलता है। अगर उल्टी हो रही हो तो इसके एक दो पत्ते चबाने से उल्टी दूर हो जाती है। पेशाब रुक-रुक कर आने की समस्या भी ठीक होती है।
* कैसे करें सेवनः इसके दो-तीन पत्ते रोज सुबह शाम चबाते रहें या दस पत्तों को एक गिलास पानी में उबाल कर काढ़ा बना कर सुबह शाम दो बार सेवन करे।
* दर्द और सूजन मेंः इसके पत्ते तवे पर हल्के से गर्म कर दर्द और सूजन वाले स्थान पर बांधें। घाव ठीक करने के लिए पत्ते उबाल कर उस पानी से घाव को धोएं और घाव पर हल्का गर्म पत्ता बांध दें। फोड़े पर भी गर्म कर पत्ता बांधने से फोड़ा या तो फूट जाता है या बैठ जाता है।
* कान दर्द मेंः इसके पीले पत्ते का रस कान में डालने से दर्द दूर हो जाता है।
* पेट दर्द मेंः सोंठ मिला कर इसके पत्ते का रस पीने से पेटदर्द दूर हो जाता है।
इसके पत्ते का स्वाद सुबह खट्टा, दोपहर को फीका और शाम को कसैला लगता है। बच्चे भी इसे आसानी से खा सकते हैं।

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