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शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

अलसी के कुछ और प्रयोग

कुछ लोग कहते हैं कि अलसी भारतीय नहीं है। यह मिस्र या यूरोप से यहां लाई गई लेकिन यह बात मिथ्या है। आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथ चरक संहिता और सुश्रुत में अलसी का उल्लेख मिलता है। ये ग्रंथ हजारों साल पुराने हैं।  अलसी का संस्कृत नाम अतसी, क्षुमा पिच्दिला, उमा है। हिन्दी में अलसी, तिसी और बीजरी कहा जाता है। मराठी में जवर या अलशी कहते हैं। गुजराती में अलसी या जवस के नाम से इसे जानते हैं। चमत्कारी जड़ी बूटी नामक पुस्तक में डा.ज्ञानेन्द्र पांडे ने पूरे छः पृष्ठों में अलसी गुणों का बखान किया है। संक्षेप में यहां कुछ नुस्खे लोक कल्याण के लिए पेश कर रहा हूं----
1. अलसी को भून कर चूर्ण बना कर शहद के साथ चाटने से खांसी, कफ में आराम मिलता है।
2.अलसी का क्वाथ बना कर पीने से जनेन्द्रीय की जलन, दाह में लाभ होता है। क्वाथ बनाने के लिए अलसी को पानी के साथ कुछ देर धीमी आंच पर उबालना चाहिए। फिर ठंडा कर छान कर पीना चाहिए।
3.अलसी को जल में पीस कर उसमें थोड़ा दही मिला कर फोड़ों पर लेप करने से वे जल्द पक कर फूट जाते हैं।
4.भूनी हुई अलसी पीस कर करीब ढाई माशे की मात्रा रोज सेवन करने से मूत्र, स्वेद(पसीना), दुग्ध एवं आर्तव में लाभ होता है। इससे आंत्र वेदना भी दूर होती है।
5.कालीमिर्च और शहद के साथ इसका सेवन कामोद्दीपक और वीर्य को गाढ़ा करने वाला होता है।
6.इसे भून कर पीस कर शहद के साथ चाटने से प्लीहा शोथ (तिल्ली वृद्धि) में लाभ होता है।
7.दमा रोगियों के लिए एक सरल नुस्खा है, अलसी के बीज साबुत आधा चम्मच, पानी पांच चम्मच को चांदी या कांच की कटोरी में 12 घंटे भीगो कर रख दें। बारह घंटे बाद यह पानी छान कर पीएं। सुबह भिगोया पानी रात को और रात में भिगोया सुबह नियमित लेने से दमा रोग में बहुत आराम मिलता है।
8.दूसरा नुस्खा है अलसी को पीस कर जल में उबालें फिर एक घंटे तक ढंक कर रख दें। बाद में छान कर मिश्री मिला कर पिएं। इससे कफ ढीला होकर सरलता से निकल जाता है और श्वास रोगियों की घबराहट में भी आराम आता है।
9.पुराने नजला-जुकाम रोगियों को भुनी हुई अलसी को पीस कर उसमें सम भाग मिश्री पीस कर मिला लें और एक डिब्बी में भर कर रख लें। गर्म जल के साथ सुबह शाम एक-एक चम्मच यह चूर्ण कुछ दिन तक लेने से कफ सरलता से निकल जाता है और जुकाम ठीक हो जाता है।
10.आग से जले पर अलसी का तेल और चूने का पानी समभाग मिला कर खूब घोटें। यह सफेद मल्हम की तरह बन जाता है। अंग्रेजी में इसे केरन आइल कहते हैं। इस मल्हम का जले स्थान पर लेप करने से पीड़ा और जलन मिटती है और घाव जल्दी भरते हैं।

12 टिप्‍पणियां:

  1. Sir its a excellent experiment forwarded by you,

    Thanks sir,

    Dr.Jagdish Joshi

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    1. आदरणीय डॉ. जगदीश जोशी जी,
      मैं आपको दन्यवाद देता हूँ कि आपने अलसी महिमा की प्रति डॉ. बाल कृष्ण निलोसे को भेंट की। और कैसे हैं।
      आपका ओम

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  2. आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक और चमत्कारी दिव्य भोजनअलसी


    • अलसी जिसे अतसी, उमा, क्षुमा, पार्वती, नीलपुष्पी, तीसी आदि नामों से भी पुकारा जाता है, एक आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक और चमत्कारी दिव्य भोजन है।

    • अलसी दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। प्राचीनकाल में नवरात्री के पांचवे दिन स्कंदमाता यानी अलसी की पूजा की जाती थी और इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता था। जिससे पूरेसालबीमारी नहीं होती थी। मन को शांति मिलती थी, वात पित्त और कफ तीनों रोग दूर होते थे और जीते जी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती थी। स्कंदमाताअर्थात्अलसीकेसंबंधमेंशास्त्रोंमेंकहागयाहै-
    अलसीनीलपुष्पीपावर्ततीस्यादुमाक्षुमा।
    अलसीमधुरातिक्तास्त्रिग्धापाकेकदुर्गरु:।।
    उष्णादृषशुकवातन्धीकफपित्तविनाशिनी।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) अलसी को सुपर स्टार फूड का दर्जादेता है।

    • गांधीजी ने अलसी के बारे में अपनी एक पुस्तक में लिखा है, जहां अलसी का सेवन किया जायेगा, वह समाज स्वस्थ व समृद्धरहेगा।

    • आठवीं शताब्दी मेंफ्रांस के सम्राट चार्ल मेगने अलसी के चमत्कारी गुणों से बहुत प्रभावित थेऔर चाहते थे कि उनकी प्रजा रोजाना अलसी खाऐ और निरोगी व दीर्घायु रहेइसलिए उन्होंने इसके लिए कड़े कानून बना दिए थे और सजा का प्रावधान भी रखा था।

    • अलसी एक सम्पूर्ण आहार है जिसके मुख्य तत्व 18% प्रोटीन, 27% फाइबर, 18% ओमेगा-3 फैटी एसिड, लिगनेन तथाविटामिन बी ग्रुप, विटामिन सी, सेलेनियम, कैल्शियम, मेगनीशियम, मेंगनीज, क्रोमियम, कॉपर, जिंक, पोटेशियम, लोहा, फोलेट, लाइकोपीन, ल्युटिन, जियाजेंथिन आदि होते हैं। अलसी का उपयोग गर्भावस्था से वृद्धावस्था तक फायदेमंद है।

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  3. • अलसी शरीर को ऊर्जा, शक्ति और उत्साह से भर देती है।
    जो नित अलसी खात है,प्रात पियत है पानी।
    कबहुं न मिलिहैं वैद्यराज से, कबहुँ न जाई जवानी।।
    यह एक मात्र संयोग है कि “निरोगधाम पत्रिका जनवरी 2010” में आप का एक लेख के माध्यम से आप के प्रति मुझे ऐसा लगवा हो गया है, जिसका वर्णन करना शब्दों के माध्यम से नहीं है। आशा करता हूँ कि यह सम्बन्द भविष्य में और अधिक गहरा होता चला जायगा। ईश्वर से मेरी यह कामना है।

    वास्तव मैं आप का यह लेख मेरे जीवन की परिभाषा ही बदल दी है। जहाँ मैं अनेक रोगों से ग्रस्त या अपने जीवन से निराश हो चला था वही आज मैं 53 वर्ष का होकर 25 वर्ष की जवानी का आन्नद उठा रहा हूँ यानि कि मृत शरीर में ऐसा ऊर्जा का संचार हो रहा है, जिसका मैं कभी कल्पना भी नहीं किया था यौनतरफा आन्नद की अनुभूति हो रही है मैं अपनी इस खुशी का इजहार किस माध्यम से करू, यह मैं स्वयं नहीं सोच पा रहा हूँ। उचित अवसर की प्रतिज्ञा में हूँ जब मैं आप से रू-ब-रू हो सकूँ। और अपने मुह से अपना इजहार कर सकूँ। आप के लेख का परिणाम है कि 100 वर्ष तक जीने कि इच्छा हो रहीं है। साथ-साथ बहुतों को जीने का गुरू भी बता रहा हूँ।

    श्रद्धेय डॉ. श्रीमान ओ. पी. वर्मा साहब,
    नमस्ते,
    विगत एक- ढ़ेड वर्षों से मैंने कुछ पत्रिका जैसे सृजन कर्म, निरोगधाम, सेहत, योग संदेश, अहॉ जिन्दगी, के साथ पेन्शन चिन्तन जुलाई 2010 में आरोग्यवर्द्धक, आयुवर्द्धक, दैविक भोजन, दिव्य आहार, प्रकृति का अनुपम आहार सुपर फुड विषेशण से सुसज्जित “अलसी” के संबंध में पढ़ा तो मेरे मन में समझने जानने सोचने पर विवश कर दैविक, अनुपम सुपर आहार खाने की प्रेरणा अंतर्मन से हुई और मैंने इसे अप्रेल 2010 से खाना प्रांरभ पत्रिकाओं में लिखि विधि अनुसार कर दिया। इसे स्वतः खाना शुरू किया, किसी की प्रेरणा से नहीं।
    दिसम्बर 2010 की स्थिती में उदरस्थ सभी विकार नष्ट हो गया। कब्ज है ही नहीं बवासीर सूखकर छोटी सी गाँठ भर रह गया। ब्लड शुगर नियंत्रण हो गया। शरीर में चुस्ती, फुर्ती, उमंग, उत्साह एवं स्टेमिना का अनुभव नवयुवक जैसा है 69 वर्ष की उम्र में भी भुख, भोजन, निद्रा पहले की अपेक्षा बढ़ गई। लोगों का कहना है कि चेहरे की चमक के अनुसार आप रिटायर भी नहीं हुए है, ऐसा लगता है।
    विधि अनुसार अलसी खाने के बाद शरीर में जिस प्रभाव का अनुभव किया हूँ ऐसी चुस्ती, फुर्ती, स्वस्थ निरोगी जीवन यापन मेरे पेन्शनर बंधु भी कर की भावना ले कर अलसी खाने के प्रचार-प्रसार का बीड़ा उठाया हूँ।
    आज की तारीख में मैंने कहाँ-कहाँअलसी खाने के लिए प्रचार कर चुका हूँ मात्र दो-तीन पत्र इस पत्र के साथ सलंग्न कर रहा हूँ। व्यक्तिगत लोगों से मिलकर ब्रोचर एवं खाने की विधि एंव लाभ अब तक हजारों व्यक्तियों को दो चुका हूँ।
    मैं अपना अनुभव लिख चुका हूँ। रोहीत कुमार चन्द्रकार ब्लड-शुगर से पीड़ित था। शुगर के कारण किडनी खराब हो गया था। दोनों पैरों में सुजन थी। बी.पी. बड़ा हुआ था। अलसी खाने से अब 90% बीमार ठीक हो गया है, जबकि रोहीत कुमार चन्द्रकार पिछले दो साल से रायपुर के माने हुए अस्पताल में चिकित्सा करवा रहे थे।
    सबका स्वस्थ जीवन, निरोगी काया बना रहे की भावना को साकार करने हेतु आगे भी प्रचार –प्रसार करता रहुँगा।
    दिनांक 6.1.2011
    केशव राम भक्त
    से. नि. प्रधान पाठक
    धमतरी
    मो. 09479205714

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  4. • आहार जगत में लिगनेन सुपर मेन नाम से विख्यात एक उभरता सितारा है। अलसी लिगनेन कापृथ्वी पर सबसे बड़ा स्रोत हैं। लिगनेनएन्टीबैक्टीरियल, एन्टीवायरल, एन्टी फंगल, एन्टील्यूपस औरएन्टीकैंसर है तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। लिगनेन विटामिन-ई से लगभग पांच गुना ज्यादा शक्तिशाली एन्टीऑक्सीडेन्ट है। लिगनेन बुरे कॉलेस्ट्रोल व ट्राइग्लिसराइडको कमकरता है, अच्छे कोलेस्ट्रोल को बढ़ाता है और ब्लड शुगर नियंत्रित रखता है। लिगनेन सचमुच एक सात सितारा पोषकतत्व है। लिगनेन वनस्पति जगत में पाये जाने वाला महत्वपूर्ण पौषक तत्व है जो स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन का वानस्पतिक प्रतिरूप है और नारी जीवन की विभिन्न अवस्थाओं जैसे रजस्वला, गर्भावस्था, प्रसव, मातृत्व और रजोनिवृत्ति में विभिन्न हार्मोन्स् का समुचित संतुलन रखता है। रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में ईस्ट्रोजन का स्त्राव कम हो जाताहै और महिलाओं को कई परेशानियां जैसे हॉट फ्लेशेज़, ओस्टियोपोरोसिस आदिहो जाती हैं। लिगनेन इन सबमें बहुत राहत देता है। यानी मीनोपोज़ की तकलीफों पर पॉज़ लगा देती है अलसी। लिगनेन बांझपन, अभ्यस्त गर्भपात और मासिक धर्म संबंधीअनियमितताएं ठीक करती है। लिगनेन हमें प्रोस्टेट, बच्चेदानी, स्तन, आंत, त्वचा आदि के कैंसर से बचाता हैं। ARAIके निर्देशक डॉ.डेनियल देव्ज कहते हैं कि जल्दी ही लिगनेन एड्स का सस्ता, सरल और कारगरउपचार साबित होने वाला है।
    मेरी उम्र 35 वर्ष है मेरी बात डॉ. साहब से फोन पर हुई थी। मेरा वजन काफी बढ़ा हुआ था मैंने डॉ. साहब को बताया उन्होंने मुझे अलसी के बारे में पूरी जानकारी दी और उनके कहे अनुसार मैंने रोज एक घंटा घुमना शुरू कर दिया एवं आहार-विहार में थोड़ा परिवर्तन किया 2-3 रोटी अलसी की रोज खाने लगी जिससे मेरा वजन कम हुआ मैंने शुरू प्रथम में ही अपना वजन कर लिया तब 72 किग्रा. था उपचार के डेढ़ माह बाद मैंने दुबारा अपना वजन किया तो मेरा वजन 67.5 किग्रा था।
    • मैंने अलसी के चमत्कार रोज देखता हूँ। उन्हें सुन कर आप सोचेंगे कि या तो मैं दीवाना हो गया हूँ या फिर आपको परियों की कहानी सुना रहा हूँ ।

    • ओमेगा-थ्री हमे रोगों से करता है फ्री। शुद्ध, शाकाहारी, सात्विक, निरापद और आवश्यक ओमेगा-थ्री का खजाना है अलसी। फिर क्यों मारो मछली जब आपके पास है अलसी। ओमेगा-3 हमारे शरीर की सारी कोशिकाओं, उनके न्युक्लिस, माइटोकोन्ड्रिया, गोलगी बॉडीज आदि सभी संरचनाओं के बाहरी खोल या झिल्लियों का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यही इन झिल्लियों को वांछित तरलता, कोमलता और पारगम्यता प्रदान करता है। ओमेगा-3 का अभाव होने पर शरीर में ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का संतुलन बिगड़ जाता है और हमारी कोशिकाएं इन्फ्लेम हो जाती हैं सुलगने लगती हैं जो आगे चल कर हमें रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा, अवसाद, अस्थिसंधशोथ और कर्करोग का शिकार बनाती हैं।

    • कब्जासुर का वध करती है अलसी। आयुर्वेद के अनुसार हर रोग की जड़ पेट है और पेट साफ रखने में यह इसबगोल से भी ज्यादा प्रभावशाली है।

    नित भोजन के संग में , मुट्ठी अलसी खाय।
    अपच मिटे, भोजन पचे, कब्जियत मिट जाये।।

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  5. • डायबिटीज अलसी। यह शर्करा नियंत्रित रखती है और मधुमेह के दुष्प्रभावों का उपचार करती है। बुनियादी चयापच दर (BMR) बढ़ाती है खाने की ललक कम करती है और वजन कम करने में सहायता करती है।

    तेल तड़का छोड़ कर नित घूमन को जाय,
    मधुमेह का नाश हो जो जन अलसी खाय।

    • हृदय रोग जरासंध है तो भीमसेन है अलसी। अलसी रक्त को पतला बनाये रखती है अलसी। रक्तवाहिकाओं को स्वीपर की तरह साफ करती रहती है अलसी। कॉलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर और हृदयगति को सही रखती है अलसी। यानी हार्ट अटेक के कारण पर अटैक करती है अलसी।

    • बॉडी बिल्डिंग के लिये नम्बर वन सप्लीमेन्ट है अलसी।
    अलसी तन को ताकत देतीनित नव ऊर्जारग में बहती
    यह पूरण आहार कहायेमांस पेशियां सुगढ़बनाये
    जो जन अलसी को नित खाये दिव्य चमत्कृत देह बनाये
    यश गाये आनंद हजारी हरे कष्ट अलसी गुणकारी
    • अलसी शरीर की रक्षा प्रणाली को सुदृढ़ कर शरीर को बाहरी संक्रमण या आघात से लड़ने में मदद करती हैं।

    • सुपरस्टार अलसी एक फीलगुड फूड है, अलसी से मन प्रसन्न रहता है, झुंझलाहट या क्रोध नहीं आता है, पॉजिटिव एटिट्यूड बना रहता है और पति पत्नि झगड़ना छोड़कर चंबल गार्डन में ड्यूएट गाते नज़र आते हैं।अलसी आपके तन, मन और आत्मा को शांत और सौम्य कर देती है। यह एक प्राकृतिक वातानुकूलित भोजन है।
    • माइन्ड के सरकिट काSIM CARDहै अलसी। यहांसिम का मतलब सेरीन शांति, इमेजिनेशनकल्पनाशीलता और मेमोरी स्मरणशक्ति तथा कार्ड का मतलब कन्सन्ट्रेशन एकाग्रता, क्रियेटिविटी सृजनशीलता, अलर्टनेट सतर्कता , रीडिंग राईटिंग थिंकिंग एबिलिटी शैक्षणिक क्षमता और डिवाइन दिव्य है। अलसी खाने वाले विद्यार्थी परीक्षाओं में अच्छे नंबर प्राप्त करते हैं और उनकी की सफलता के सारे द्वार खुल जाते हैं।
    घी खाये मांस बढ़े, अलसी खाये खोपड़ी।
    दूध पिये शक्ति बढ़े, भुला दे सबकी हेकड़ी।।

    • आपराधिक प्रवृत्ति से ध्यान हटाकर अच्छे कार्यों में लगाती है अलसी। इसलिये आतंकवाद का भी समाधान है अलसी।

    • कभी-कभी चश्में से भी मुक्ति दिला देती है अलसी। दृष्टि को स्पष्ट और सतरंगी बना देती है अलसी।

    • कई असाध्य रोग जैसे एल्ज़ीमर्स, मल्टीपल स्कीरोसिस, डिप्रेशन, पार्किनसन्स, ल्यूपस नेफ्राइटिस, एड्स, स्वाइन फ्लू आदि का भी उपचार करती है अलसी।

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  6. • त्वचा, केश और नाखुनों का नवीनीकरण या जीर्णोद्धार करती है अलसी। अलसी सुरक्षित, स्थाई और उत्कृष्ट भोज्य सौंदर्य प्रसाधन है जो त्वचा में अंदर से निखार लाता है। त्वचा, केश और नाखून के हर रोग जैसे मुहांसे, एग्ज़ीमा, दाद, खाज, खुजली, सूखी त्वचा, सोरायसिस, ल्यूपस, डेन्ड्रफ, बालों का सूखा, पतला या दोमुंहा होना, बाल झड़ना आदि का उपचार है अलसी। चिर यौवन का स्रोता है अलसी। बालों का काला हो जाना या नये बाल आ जाना जैसे चमत्कार भी कर देती है अलसी। अलसी खाकर 70 वर्ष के बूढे भी 25 वर्ष के युवाओं जैसा अनुभव करने लगते हैं।

    अलसी खाने से अजमेर के रिटायर्ड कॉलेज प्रिंसिपल डॉ. ओ.पी.टंडन के 76 वर्ष की उम्र में सिर के सारे बाल काले हो गये हैं और मेरठ के ज्वेलर प्रभात रस्तोगी की मूँछे काली हो गई हैं।
    चर्म रोग को दूर भगाये। कील, मुँहासे खाज मिटाये।।
    दाद छाल एग्जीमा कैसा। रूप निखारे सोने जैसा।।

    • जोड़ की हर तकलीफ का तोड़ है अलसी। जॉइन्ट रिप्लेसमेन्ट सर्जरी जुगाड़ है तो अलसी इलाज छप्पर फाड़ है। ¬¬ आर्थ्राइटिस, शियेटिका, ल्युपस, गाउट, स्टियोआर्थ्राइटिस आदि का उपचार है अलसी।
    मैंने निरोगधाम में पढ़ कर अलसी का सेवन शुरू किया। मेरी उम्र 60 वर्ष है और मुझे घुटनों के दर्द की समस्या बहुत गंभीर थी। मुझे घर में चलने फिरने में भी दिक्कत होती थी। तीन-चार महिनों अलसी का सेवन करने के बाद अलसी मुझे कुछ-कुछ आराम आना शुरू हो गया था। और चलने में भी कम दिक्कत होने लगी। अब मुझे एक साल हो गया है अलसी की रोटी खाते हुए। अब मेरे घुटनों में दर्द लगभग खत्म हो गया है। और मैं सीढ़ियां भी चढ़ लेती हूँ जो कि पहले नहीं चढ़ पाती थी। एक–दो किलोमीटर चल भी लेती हूँ। मैं सबको कहना चाहती हूँ कि अलसी से बढ़िया कुछ नहीं है। इसके सेवन से सारा दिन आप में काम करने कि ताकत आ जाती है। मेरे पति को डायबिटीज है, उन्हें भी अलसी से बहुत फायदा हुआ है और दवाइयों की डोज भी कम हुई है। आज मैं सिर्फ सेवा भावना से बिना तनख्वाह के एक स्कूल में पढ़ाने भी जाती हूँ।

    अचला कालरा
    अबोहर, पंजाब


    अलसी के एक और चमत्कार से डा.मनोहर भंडारी ने विगत दिनों साक्षात्कार कराया। जबलपुर-नागपुर रोड पर पाँच किलो मीटर दूर एक जैन तीर्थ है, पिसनहारी मांडिया। यह तीन सौ फुट ऊँची एक पहाड़ी पर बना है। चार सौ सीढ़ियाँ चढ़ कर उपर पहुँचना पड़ता है। वहाँ एक मुनीमजी हैं जिनका नाम प्रकाश जैन है, जिनके घुटनों में दर्द रहता था। एक दिन बोले डाक्टर साहब कोई दवा बताइए। सीढ़ियाँ चढ़ने में बड़ी तकलीफ होती है। डा.भंडारी ने उन्हें अलसी खाने की सलाह दी। मुनीमजी ने दूसरे ही दिन से अलसी का नियमित सेवन शुरू कर दिया। कुछ दिनों बाद जब डाक्टर भंडारी पिसनहारी मांडिया गए तो, मुनीमजी ने बड़ी प्रसन्नता के साथ बताया-डाक्टर सा.आपका अलसी वाला नुस्खा तो बड़ा कारगर रहा। आपके बताए अनुसार करीब तीस ग्राम अलसी रोज पीस कर खाता हूँ। घुटनों का दर्द गायब हो चुका है। चार सौ सीढ़ियाँ रोज तीन बार चढ़ता हूँ। अब कोई कष्ट नहीं होता। पहले 1500 रुपये महीने की दवा खाने के बाद भी ज्यादा फायदा नहीं था और दो बार ऊपर मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने में भी तकलीफ होती थी।

    • प्रतिदिन 30-60 ग्राम खानी चाहिये अलसी। रोज अलसी को मिक्सी के चटनी जार में सूखा पीसकर आटे में मिलाकर रोटी, परांठा, बाटी या बाफला आदिबनाकर खायें। इसकी ब्रेड, केक, कुकीज़, आइसक्रीम, लड्डू आदि स्वादिष्टव्यंजन भी बनाये जाते हैं। इसेआप सब्ज़ी, दही, दाल, सलाद आदि में भी डाल कर ले सकते हैं। पहले आप खायें फिर अपने दोस्तों को खिलायें। मैं हमेशा कहता हूँ कि पहले इस्तेमाल करो फिर विश्वास करो। यह सचमुच पूरे शरीर का कायाकल्प कर देती है।

    नित पीसो अलसी नित खाओ नित सब रोगन को दूर भगाओ
    अलसी सेवन उम्र बढ़ाये और बुढ़ापा निकट न आये।

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  7. डॉ. योहाना बुडविज

    • डॉ. योहाना बुडविज की चर्चा के बिना अलसी की कोई भी गोष्ठी अधूरी ही रहती है। डॉ योहाना बुडविज (जन्म 30 सितम्बर, 1908 तथा मृत्यु 19 मई 2003) विश्व विख्यात जर्मन जीवरसायन विशेषज्ञ व चिकित्सक थीं। वे जर्मन सरकार के फैट्स और फार्मास्युटिकल डिपार्टमेंट में सर्वोच्च पद पर कार्यरत थी। वे जर्मनी व यूरोप की विख्यात वसा और तेल विशेषज्ञ थी। उन्होंने वसा, तेल तथा कैंसर के उपचार के लिए बहुत शोध किये थे। इन्होंने अलसी के तेल, पनीर, कैंसररोधी फलों और सब्ज़ियों से कैंसर के उपचार का तरीका विकसितकिया था जो बुडविज प्रोटोकोल के नाम से जाना जाता है। यह क्रूर, कुटिल, कपटी, कठिन, कष्टप्रद कर्करोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान है। उन्हें 90 प्रतिशत सेज्यादा सफलता मिलती थी। इसके इलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हेंअस्पताल में यह कहकर डिस्चार्ज कर दिया जाता था कि अब कोई इलाज नहीं बचा है, वे एक या दो धंटे ही जी पायेंगे सिर्फ दुआ ही काम आयेगी। डॉ. योहाना का नाम नोबेल पुरस्कारके लिए 7 बार चयनित हुआ था। डॉ. योहाना का उपचार श्री कृष्ण भगवान का वो सुदर्शन चक्र है जिससे किसी भी कैंसर का बच पाना मुश्किल है।
    कैंसर की डॉक्टर जोहाना बुडविग शोध किया पहचाना
    अलसी तेल पनीर मिलाया किया अचंभित फल जो पाया
    जन हित धर्म कर्म चमकाया सात बार नोबल ठुकराया
    कर्क रोग से सब जग हारा अलसी खिला खिला उपचारा

    • पीपुल अगेन्स्ट कैंसर नामक संस्थाके फाउन्डर और प्रेसीडेन्ट लोथर हरनाइसेकई वर्षों तक दुनियां भर में घूमते रहे और बुडविज के सैंकड़ों मरीजों से विस्तार में बातचीत करने के बाद इस नतीजे पर पहुँचे कि बुडविज पद्धति कैंसर उपचार की सबसे अच्छी आहार चिकित्सा पद्धति है। वे अचंभित थे कि बुडविज द्वारा विकसित किया गया एलडी तेल मलने मात्र से वे रोगी भी उठ पड़े थे जो कोमा में थे और आज वे स्वस्थ जीवन बिता रहे हैं।

    • विख्यात कैंसर विशेषज्ञ डॉ. डेन सी रोह्म कहते हैं कि शुरू में तो मुझे डॉ. बुडविज पद्धति पर विलकुल विश्वास नहीं हो रहा था लेकिन जब मैंने डॉ. बुडविज से विस्तार में बातचीत की और उनके उपचार से ठीक हुए रोगियों से मिला तो मुझे पूरी तरह समझ में आ गया कि कैंसर बहुत कमजोर और असहाय रोग है और कैंसर को सचमुच आसानी से बुडविज की आहार पद्धति से ठीक किया जा सकता है।

    • एक इन्टरव्यू में बुडविज ने कहा है कि गोटिंजन में एक रात को एक महिला अपने बच्चे को लेकर रोती हुई मेरे पास आई और बताया कि उसके बच्चे के पैर में सारकोमा नामक कैंसर हो गया है और डॉक्टर उसका पैर काटना चाहते हैं। मैंने उसे सांत्वना दी, उसको सही उपचार बताया और उसका बच्चा जल्दी ठीक हो गया और पैर भी नहीं काटना पड़ा।

    • नोबेल पुरस्कार समिति उन्हें नोबल पुरस्कार देना चाहती थी पर उन्हें डर था कि इस उपचार के प्रचलित होने और मान्यता मिलने से कैंसर व्यवसाय (कीमोथेरेपी और विकिरण चिकित्सा उपकरण बनाने वाले बहुराष्ट्रीय संस्थान) रातों रात धराशाही हो जायेगा। इसलिए उन्हें कहा गया कि आपको कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी को भी अपने उपचार में शामिल करना होगा। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबल पुरस्कार को एक नहीं सात बार ठुकराया।

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  8. • यह सब देखकर कैंसर व्यवसाय से जुड़े मंहगी कैंसररोधी दवाईयां और रेडियोथेरेपी उपकरण बनाने वाले संस्थानों की नींद हराम हो रही थी। उन्हें डर था कि यदि यह उपचार प्रचलित होता है तो उनकी कैंसररोधी दवाईयां और कीमोथेरिपी उपकरण कौन खरीदेगा? इस कारण सभी बहुराष्ट्रीय संस्थानों ने उनके विरूद्ध कई षड़यन्त्र रचे। ये नेताओं और सरकारी संस्थाओं के उच्चाधिकारियों को रिश्वत देकर डॉ. योहाना को प्रताड़ित करने के लिए बाध्य करते रहे। फलस्वरूप इन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा, सरकारी प्रयोगशालाओं में इनके प्रवेश पर रोक लगा दी गई और इनके शोध पत्रों के प्रकाशन पर भी पाबंदी लगा दी गई।यह स्वास्थ्य जगत के इतिहास में मानवता को शर्मसार कर देने वाली तथा रौंगटे खड़े कर देने वाली सबसे दुर्भाग्यपूर्ण और विवादास्पद घटना है।

    • विभिन्न बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने इन पर तीस से ज्यादा मुकदमें दाखिल किये। डॉ. बुडविज ने अपने बचाव हेतु सारे दस्तावेज स्वंय तैयार किये और अन्तत: सारे मुकदमों मे जीत भी हासिल की। न्यायाधीशों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लताड़ लगाई और कहा कि डॉ. बुडविज द्वारा प्रस्तुत किये गये शोध पत्र सही हैं, इनके द्वारा विकसित किया गया उपचार जनता के हित में है और आम जनता तक पहुंचना चाहिए। इन्हे व्यर्थ परेशान नहीं किया जाना चाहिए।

    • यह बात गौरतलब है कि बुडविज के 50% रोगी डॉक्टर या उनके परिवार के सदस्य हुआ करते थे।

    • कैंसर विशेषज्ञ भी अक्सर यह बात स्वीकार करते हैं कि यदि उन्हें कैंसर हुआ तो वे मरना पसंद करेंगे पर किलर कीमो नहीं लेंगे।

    • बुडविज आहार पद्धति की विश्वसनीयता और ख्याति का आलम यह है कि गूगल पर मात्र बुडविज टाइप करने पर एक लाख पचपन हजार वेब साइटें खुलती हैं जो चीख चीख कर कहती हैं, बुडविज उपचार सम्बंधी सारी बारीकियां बतलाती हैं और बुडविज पद्धति से ठीक हुए रोगियों की पूरी जानकारियां देती हैं। पर डॉ. बुडविज की ये पुकार सरकारों, उच्चाधिकारियों और एलोपेथी के कैंसर विशेषज्ञों तक कभी नहीं पहुँच पायेंगी क्योंकि उनके कान, आँखें और मुँह सभी के रिमाट केट्रोल 200 बिलियन डॉलर के राउडी रेडियोथैरेपी तथा किलर कीमोथैरेपी बनाने वाली मल्टीनेशनल कम्पनियों के पास हैं। आप समझ सकते हैं क्यों। इन्हें मौत के सौदागर कहना ज्यादा सही होगा।

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  9. लोगों के अनुभव
    • डॉ. मनोहर भंडारी की डायबिटीज में अलसी के सेवन लाभ मिल रहा है। दवाओं की मात्रा कम हो रही है। उनकी एक रिश्तेदार के चेहरे पर हुए जैन्थोमा जिन्हें लेजर उपचार भी ठीक नहीं कर पाया था, अलसी से ठीक हो रहे हैं। उनके एक भतीजे को डिप्रेशन और ब्लड प्रेशर था, उसे मात्र 9 दिन अलसी के सेवन से ही दोनों रोगों में चमत्कारी लाभ हुआ है ।
    • नई दुनिया की सहपत्रिका सेहत के संपादक श्री प्रदीप जैन की एक रिश्तेदार को कैंसर था, डॉ. ने कहा था कि वो मुश्किल से एक महीना जी पायेगी। तब श्री प्रदीप जैन ने मुझसे संपर्क कर उसे अलसी के तेल और पनीर पर आधारित बुडविज आहार विहार शुरू कर दिया था और आज छः महीने बाद भी वह जीवित है, अच्छी है और उसका कैंसर ठीक हो रहा है।

    • एम पी की एक प्रशासनिक अधिकारी ने अलसी से अपना ब्लड प्रेशर, कॉलेस्ट्रॉल और मोटापा ठीक किया है और उनके पति के बाल काले हो गये हैं। उन्होंने मुझे बतलाया कि जब वे ट्रांसफर होकर आये तो साथ में एक बारी अलसी साथ लाये थे।

    • सागर के श्री यशवंत ठाकुर ने मुझे बताया कि अलसी के सेवन से उनके सिर में नये काले बाल उगना शुरू हो गया है।

    • डा.के.एल. भार्गव मध्यप्रदेश के सहायक औषधि नियंत्रक के पद से सेवानिवृत हुए हैं। डा.भार्गव का वैकल्पिक चिकित्सा, स्वदेशी व प्राकृतिक चिकित्सा में अगाध विश्वास है। आप भी घुटनों के दर्द से परेशान थे। घुटनों में केलिपर्स भी लगा रखे थे। लेकिन चलने में तो फिर भी तकलीफ होती थी। मुश्किल से कुछ कदम चल पाते थे। साकेत क्लब में डा.ओपी वर्मा का अलसी पर व्याख्यान सुनने के बाद उन्होंने ने भी अलसी को अपनाया। एक माह में ही इतना लाभ हुआ कि अब एक डेढ़ किलो मीटर चल लेते हैं। उनकी पत्नी को पीठ का दर्द रहता था। रोज पेनकिलर खानी पड़ती थी। अलसी से उन्हें भी लाभ हुआ है। उनकी पेनकिलर छूट गई। पीठ् का दर्द दूर हो गया। तो ऐसी है अलसी की महिमा।


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