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1. इसके पत्तों के रस को कान में डालने से कर्णशूल में लाभ होता है।
2.अर्जुन की लकड़ी का महीन चूर्ण अर्जुन सुधा कहलाता है। यह कफनाशक है।
3.अर्जुन के प्रयोग से हृदय की संकोच, विकास और विश्राम तीनों क्रियाएं नियमित हुआ करती हैं। इससे हृदय को विश्राम और बल की प्राप्ति होती है।
4.प्राचीनकाल में आयुर्वेद विशेषज्ञ अस्थिभंग(फ्रेक्चर) होने पर अर्जुन के लेप से इसे ठीक किया करते थे।
5.चोट आदि के बाद रक्तस्राव बंद करने के लिए भी अर्जुन का लेप किया जाता रहा है। इनके अलावा भी अर्जुन के अनेकानेक रोगों में प्रयुक्त होने के प्रमाण आयुर्वेद ग्रंथों में उल्लिखित हैं। लेकिन अफसोस अब इनके कद्रदान नहीं बचे।
दिनेश पेंटर का धंधा भी गया
अर्जुन के नजदीक कुछ और भी दरख्त थे। एक विशाल पेल्टाफोरम के तले पेंटर दिनेश चंचल की दूकान थी। वे कवि हृदय दिनेश बड़े नफासत से गाड़ियों की नम्बर प्लेट पर नम्बर लिखा करते थे। लोग उनसे नम्बर लिखवाने के लिए घंटों इंतजार करते थे। फुरसत में दिनेश पेंटर शेरो शायरी और कविताओं का शौक फरमाते। उनके चाहने वालों का मजमा लगा रहता था। विकास ने इसका भी विनाश कर दिया।
इमली की खट्टी-मिठी यादें
नईदुनिया के मुख्य द्वार पर एक विशाल इमली का दरख्त है। अभी तो खड़ा है पता नहीं जाने कब विकास की बलि चढ़ जाए। इस दरख्त से कईं यादें जुड़ी हैं। 42 साल से तो मैं ही इसे सीना तानकर खड़े देखते आ रहा हूं। इसकी घनी छांव तले एक प्याऊ और वाचमेन की गुमटी है। पुराने समय में जब चलित क्रेन्स का चलन नहीं था, नईदुनिया की विशाल प्रिंटिंग मशीनों को इसी तरख्त ने ट्रकों से नीचे उतरवाया। इसकी मजबूत शाख पर चेन ब्लाक लगाकर मजदूर जोर लगाके हैया के साथ वजनी मशीनों को उतारते और फिर लोहे पाइपों पर लुढ़का कर प्रिंटिंग हाऊस तक ले जाते थे। एक बार एक मशीन गिर कर डेमेज हो गई थी। कंपनी से फिर उसके पार्टस मंगा कर वहां से आए इंजीनियरों की मदद से नईदुनिया के प्रिंटिंग एक्सपर्ट फ्रांसिस जेवियर ने चालू किया था।
यही तो दुर्भाग्य है कि अपनी विरासत को त्याग रहे हैं.
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