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रविवार, 17 मार्च 2013

कब्जासुर से मुक्ति दिलाती है अलसी


स्वस्थ शरीर के लिए बहुत आवश्यक है कि हमारे आहार पथ से मल, टॉक्सिन्स और अपशिष्ट पदार्थों का नियमित
 रूप से विसर्जन होता रहे। अन्यथा हमारा पेट सेप्टिक टैंक बन जायेगा। जो लोग कब्जी से पीड़ित रहते है, वे ही
 बता सकते हैं कि यह कितना कष्टदायक रोग है। आयुर्वेद के अनुसार हर रोग की जड़ पेट है। सभी तरह के फाइबर
 से भरपूर अलसी कब्जासुर का वध करती है। यहाँ तक कि पतले दस्त में भी अलसी (जादुई म्यूसिलेज के कारण)
 हितकारी साबित हुई है। ओमेगा-3 फैट और मुलायम म्यूसीलेज फाइबर, कब्ज दूर करने में बहुत प्रभावशाली हैं।
हाँ यह जरूरी है कि अलसी खाने के बाद खूब पानी पीना आवश्यक है, क्योंकि म्यूसीलेज को फूलने के
 लिए पानी की जरूरत होती है। अलसी आइ.बी.एस., पतले दस्त तथा अन्य पाचन रोगों में परेशान और रुग्ण
आंतों को सुकून और राहत देती है। अलसी आंतों का शोधन करती है और नियमित प्रयोग करने से आंत के कैंसर
 से बचाव करती है। 

एक डबल ब्लाइंड स्टडी में आइ.बी.एस. के कारण कब्जी से पीड़ित 55 मरीजों 
को तीन महीने तक अलसी या इसबगोल (psyllium) दी गई। अलसी खाने वाले
 मरीजों को कब्जी, पेट दर्द या पेट फूलने की तकलीफ इसबगोल खाने वालों की 
अपेक्षा कम हुई। इन प्रयोगों से अनुसंधानकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि कब्जी के
 उपचार में अलसी इसबगोल से भी ज्यादा प्रभावशाली है।

 आइ.बी.एस. (Irritable bowel syndrome)

आइ.बी.एस. (Irritable bowel syndrome) बड़ी आंत का रोग है, जिसमें
 वायु विकार, दस्त, पेट दर्द और कब्जी की तकलीफ होती है। हम इस रोग का
 स्पष्ट कारण अभी तक नहीं ढूँढ़ पाये हैं। इस रोग का उपचार भी बहुत मुश्किल है।
 इसलिए अधिकांश मरीज आयुर्वेद या घरेलू उपचार लेना पसंद करते हैं। अलसी और इसका तेल भी अच्छा उपचार 
माना गया है। अलसी में विद्यमान फाइबर आइ.बी.एस. के रोगियों को बहुत राहत देता है। यह आंतों को स्वस्थ और
 गतिशील रखता है। लिगनेन और अल्फा लिनोलेनिक एसिड प्रदाह को शांत करते हैं। 

अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative Colitis) 

अल्सरेटिव कोलाइटिस बड़ी आंत का रोग है, जिसमें बड़ी आंत और मलाशय की आंतरिक उपकला (Epithelium)
 प्रदाहग्रस्त हो जाती है और आंत में कष्टदायी फोड़े या छाले हो जाते हैं। प्रदाह और छालों के कारण कई विकार जैसे
 रक्तस्राव, पतले दस्त हो जाते हैं। आगे चल कर रोगी को जोड़ों में दर्द, वजन कम होना, यकृत और नेत्र रोग हो सकता है। 

फाइबर का फंडा 

आहार पथ में फाइबर का मुख्य कार्य टॉक्सिन तथा कॉलेस्टेरोल समेत मल और अपशिष्ट को मलद्वार की ओर 
गतिशील रखता है। फाइबर हमें साबुत अन्न, अलसी, दाल, मटर, मसूर, मेवे, सब्जी और फलों द्वारा प्राप्त होता है।
 फाइबर भोजन का वह तत्व है, जिसका विघटन या पाचन नहीं हो पाता है। यह पचे हुए भोजन, जल और अपशिष्ट
 तत्वों को साथ लेकर आहार पथ में आगे बढ़ता है। फाइबर दो तरह का होता है। पहला जल में घुलनशीन और दूसरा 
अघुलनशील होता है। ये दोनों साथ मिल कर आंतो की सफाई करते हैं। आंतो को स्वास्थ और सुरक्षा प्रदान करते हैं.।
अलसी गुरु डा.ओपी वर्मा का यह मेल मुझे आज ही मिला है। 
अपने पाठकों के हितार्थ इसे जस का तस पेश कर रहा हूं। 

2 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे यह जानना है कि अलसी को साबुत भी खा सकते हैं ? अगर हां तो क्‍या उसे चबाना चाहिए या ऐसे ही निगल लेना चाहिए ? या भून कर पीस कर ही खाना चाहिए. हिमाचल के हमारे गामीण इलाके में सर्दियों में अलसी को भून कर पीस कर और गुड़ की शक्‍कर में मिलाकर लड्डू बना कर खाने का चलन है. क्‍या यह तरीका भी ठीक है ? क्‍या बताएं, साभार.

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