जैविक अनाज की अपनी अलग महत्ता है। धीरे-धीरे जैविक खेती का चलन बढ़ा है । रासायनिक उर्वरकों के कारण धरती का हाजमा तो खराब हमने किया ही है, मनुष्यों के स्वास्थ्य को भी बिगाड़ कर रख दिया है। वैसे हमारे पूर्वज जैविक खेती ही करते रहे हैं। जब से हरित क्रांति का आगाज हुआ, रासायनिक खाद और कीटनाशकों ने मोर्चा संभाल लिया और जैविक खेती धीरे-धीरे लुप्त होती चली गई। लेकिन अच्छाई कभी मरती नहीं है। समय की गर्त में मंद भले ही पड़ जाए लेकिन जब अवसर आता है पूरे वेग से वापस लौटती है। इंदौर में ख्यात रंगकर्मी बाबा डिके के सुपुत्र अरुण डिके जैविक खेती की अलख जगाए हुए हैं। इंदौर के निकट रंगवासा में उनका जैविक ग्राम संस्थान है। यह इंदौर से मात्र 13 किलोमीटर की दूरी पर है। यह पांच एकड़ क्षेत्र में फैला है। खास बात यह कि वे भूले बिसरे अनाज की जैविक खेती करते हैं। जैसे अलसी, कोदो, रागी, जई(ओट्स), कट्टू, जौ वगैरह। इस मोटे अनाज की महत्ता को नई पीढ़ी भूला चुकी है। कई लोग तो इनको पहचानते भी नहीं। किसी को अलसी खाने को कहो, पूछते हैं अलसी क्या होती है या कोदो किस चिड़िया का नाम है। श्री डिके इन भूले बिसरे धान की पहचान फिर कायम करने के कार्य में जुटे हैं। उन्हें साधुवाद।सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामय। अगर हम एक आदर्श जीवनशैली अपना लें, तो रोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। मैंने अपने कुछ अनुभूत प्रयोग यहां पेश करने की कोशिश की है। जिसे अपना कर आप भी स्वयं को चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं। सुझावों का सदैव स्वागत है, कोई त्रुटि हो तो उसकी तरफ भी ध्यान दिलाइए। ईमेल-suresh.tamrakar01@gmail.com
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शनिवार, 23 मार्च 2013
जैविक अनाज और निरोगी आटा
जैविक अनाज की अपनी अलग महत्ता है। धीरे-धीरे जैविक खेती का चलन बढ़ा है । रासायनिक उर्वरकों के कारण धरती का हाजमा तो खराब हमने किया ही है, मनुष्यों के स्वास्थ्य को भी बिगाड़ कर रख दिया है। वैसे हमारे पूर्वज जैविक खेती ही करते रहे हैं। जब से हरित क्रांति का आगाज हुआ, रासायनिक खाद और कीटनाशकों ने मोर्चा संभाल लिया और जैविक खेती धीरे-धीरे लुप्त होती चली गई। लेकिन अच्छाई कभी मरती नहीं है। समय की गर्त में मंद भले ही पड़ जाए लेकिन जब अवसर आता है पूरे वेग से वापस लौटती है। इंदौर में ख्यात रंगकर्मी बाबा डिके के सुपुत्र अरुण डिके जैविक खेती की अलख जगाए हुए हैं। इंदौर के निकट रंगवासा में उनका जैविक ग्राम संस्थान है। यह इंदौर से मात्र 13 किलोमीटर की दूरी पर है। यह पांच एकड़ क्षेत्र में फैला है। खास बात यह कि वे भूले बिसरे अनाज की जैविक खेती करते हैं। जैसे अलसी, कोदो, रागी, जई(ओट्स), कट्टू, जौ वगैरह। इस मोटे अनाज की महत्ता को नई पीढ़ी भूला चुकी है। कई लोग तो इनको पहचानते भी नहीं। किसी को अलसी खाने को कहो, पूछते हैं अलसी क्या होती है या कोदो किस चिड़िया का नाम है। श्री डिके इन भूले बिसरे धान की पहचान फिर कायम करने के कार्य में जुटे हैं। उन्हें साधुवाद।
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Very Good Blog
जवाब देंहटाएंसही कहा है !!
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