सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामय। अगर हम एक आदर्श जीवनशैली अपना लें, तो रोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। मैंने अपने कुछ अनुभूत प्रयोग यहां पेश करने की कोशिश की है। जिसे अपना कर आप भी स्वयं को चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं। सुझावों का सदैव स्वागत है, कोई त्रुटि हो तो उसकी तरफ भी ध्यान दिलाइए। ईमेल-suresh.tamrakar01@gmail.com
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शनिवार, 30 जुलाई 2011
फूलों से उपचार
फल और फूल मनुष्य को प्रकृति का अनुपम उपहार है। ये अनेक खनिज व लवणों से भरपूर होते हैं। मौसम के अनुकूल प्रकट होते हैं और अगर समझदारी से इनका सेवन किया जाए तो तन व मन को स्वस्थ एवं प्रसन्न रखा जा सकता है। प्राचीन भारतीय चिकित्सा शास्त्र में पुष्प चिकित्सा का भी बड़ा महत्व रहा है। विदेशी चिकित्सा पद्धति में भी इंग्लैंड के डा.एडवर्ड बाख का नाम फ्लावर रेमेडी के लिए मशहूर है। 1886 में जन्में डा.बाख पहले इंग्लैंड के जानेमाने पैथालाजिस्ट थे। मनुष्य की आँतों के स्राव का अध्ययन कर उन्होंने पाया कि इसमें सात प्रकार के जीवाणु होते हैं। इनके आधार पर उन्होंने रोगोपचार के लिए वेक्सिनें बनाई। लेकिन शीघ्र ही उनका इनसे मोहभंग हो गया। वे सब कुछ छोड़छाड़ कर वेल्स की घाटियों में चले गए। डा.बाख होमियोपैथी के जनक डा.सेम्युअल हैनीमन के इस सिद्धांत से प्रभावित थे कि रोगों का नहीं रोगियों का उपचार होना चाहिए। एक दिन वे सुबह-सुबह वेल्स की वादियों में सैर कर रहे थे। पुष्प और पल्लव पर ओस की नन्हीं-नन्हीं बूँदें चमक रही थीं। छोटे-छोटे परिंदे इन बूँदों का रसपान कर अतीव प्रसन्न नजर आ रहे थे। डा.बाख को भी प्रेरणा हुई कि क्यों न इन ओस बिंदुओं को चखा जाए। उन्होंने जब ऐसा किया तो मन प्रसन्नता से भर उठा। और इसी पल पुष्प चिकित्सा का फूल उनके मन में खिल उठा। डा.बाख अपनी प्रसिद्ध पुस्तक हील दाय सेल्फ में लिखते हैं-मनुष्य अपने मन के भय और विकृत अवस्थाओं के कारण बीमार पड़ता है। मन की ये विकृतियाँ तन पर नाना प्रकार के रोगों के रूप में प्रकट होती हैं। मन के प्रभावाओं का अध्ययन कर उन्होंने विभिन्न फूलों से 38 प्रकार की दवाएं बनाईं। उनकी यह सौम्य चिकित्सा पद्धति ही फ्लावर रेमेडी के नाम से मशहूर हुई और आज भी विश्व के अनेक भागों में इसे अपनाया जाता है।
भारतीय चिकित्सा पद्धति में भी विभिन्न प्रकार के फूलों से अलग-अलग रोगों का उपचार किया जाता है। यहाँ हम ऐसे चंद नमूने पेश कर रहे हैं-
1.गुलाब का फूल देखते ही मन प्रसन्नता से खिल उठता है। यह तन पर भी वैसा ही प्रभाव डालता है। इससे निर्मित गुलकंद उदररोगों की अक्सीर दवा है। यह शरीर की गर्मी को दूर करता है। कब्ज मिटाता है।
2.गुड़हल जिसे अंग्रेजी में चायना रोज के नाम से जाना जाता है, यह भी औषधि गुणों से भरपूर है। यह तनमन को शीतलता व शक्ति प्रदान करता है। पीलिया रोग भी इससे ठीक होता है। गुलाब की तरह इसका भी गुलकंद बनाया जाता है।
3.बेलपत्र का फूल दमा रोग की अक्सीर दवा है।
4.पलाश या ढाक के फूल पेट की कृमि का नाश करते हैं।
5.सहजन जिसे अंग्रेजी में ड्रम स्टीक कहते हैं के फूल भी उदररोग दूर करते हैं।
6.बारहमासी के सफेद फूल मधुमेह में कारगर हैं।
7.नीम, करेला व जामुन के फूलों से मिर्गी रोग की दवा बनाई जाती है।
8.चमेली के फूल रक्त के तापमान को कम करते हैं। ये जीवाणुरोधी व ट्यूमररोधी होते हैं। रक्तस्राव रोकते हैं, बुखार दूर करते हैं। लू व गर्मी से उत्पन्न विकारों को मिटाते हैं। फूलों को पीस कर चेहरे पर लगाने से चेहरा खिल उठता है।
9.आक के फूल की लौंग, कालीमिर्च व सेंधानमक मिला कर खाने से अजीर्ण दूर होता है।
10.सफेद कनेर के फूल और जड़ को पीस कर पिलाने से सर्पदंश में लाभ होता है।
11.कमल पुष्प का रस एक तोला, मिश्री आधा तोला दोनों मिला कर खिलाने से प्रमेह रोग ठीक होता है।
12.अमतलास के पीले-पीले आकर्षक पुष्प पीलिया रोग दूर करते हैं। इसका भी गुलकंद बनाया जाता है।
13.बबूल के फूल पीस कर जल में मिला कर पिलाने से स्त्रियों के प्रदररोग में लाभ होता है।
14.महुआ के फूल शहद के साथ खाने से धातु पुष्ट होती है।
15.कुमुदिनी के पुष्प की पंखुड़ियों को पीस कर चेहरे व सिर में लगाने से शीतलता मिलती है।
सवाल उठ सकते हैं कि फूलों को कैसे खाया जाए। फूलों को पूरा खाना चाहिए अर्थात डंडी व पराग सहित। खाने से पूर्व अच्छी तरह धो लेना चाहिए। यह सुनिश्चित कर लें कि उसमें कीड़े नहीं हों। छोटे फूल की मात्रा पाँच से सात और बड़े की दो से तीन तक या अपने शरीर की आवश्यकताअनुसार लिए जा सकते हैं।
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