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रविवार, 15 जुलाई 2012

मनोआघात है कैंसर का कारण

जर्मनी के शल्य-चिकित्क और कैंसर विशेषज्ञ डॉ. राइक गीर्ड हेमर (जन्म-1935) पिछले दस वर्ष से कैंसर के मनोविज्ञान पहलुओं और उपचार पर शोध कर रहे हैं। इन्होंने 40,000 से अधिक सभी तरह के कैंसर रोगियों से पूछताछ और परीक्षण किये हैं। वे चकित थे कि कैंसर एक अंग से उसके पास के अंग में क्यों नहीं फैलता है। जैसे कि उन्होंने एक ही स्त्री में गर्भाशय–ग्रीवा(Cervix) और गर्भाशय (Uterus) दोनों के कैंसर कभी एक साथ नहीं देखे। उन्होंने इस बात पर भी गौर किया कि उनका हर रोगी कैंसर होने के कुछ वर्षों पहले किसी मानसिक आघात या सदमें से गुजरा था, और वह इस सदमें से पूरी तरह निकल नहीं पाया था।
डॉ. हेमर हर रोगी के सिर का सीटी स्केन भी करवाते थे। और उन्होंने यह भी देखा कि हर रोगी के सीटी स्केन में मस्तिष्क के किसी हिस्से में एक गहरे धब्बे या छल्ले होते थे। यह बात भी काबिले गौर थी कि अमुक अंग के कैंसर के रोगियों के मस्तिष्क में वह छल्ले बिलकुल एक खास जगह ही होते थे। उन्होंने सभी रोगियों में कैंसर के ठिकाने, मस्तिष्क में छल्लों की स्थिति और सदमें की किस्म में शत-प्रतिशत एक खास तरह का सम्बंध देखा। यह बहुत चौंकाने वाली बात थी। इन अनुभवों के आधार पर डॉ. हेमर ने निष्कर्ष निकाला कि हर भावना (जैसे क्रोध, कुंठा या संताप) को महसूस करने के लिए मस्तिष्क में विशेष केन्द्र होता है और ये केन्द्र किसी अंग की गतिविधि का नियंत्रण भी करता है। जब कोई व्यक्ति लम्बे समय तक किसी तरह के सदमा से गुजरता है, जिसे वह सुलझा भी नहीं पाता है तो नकारात्मक संकेत मिलते रहने से मस्तिष्क का वह केंन्द्र भी कुंठित, क्रोधित और कर्महीन हो जाता है। कर्महीन होने से वह एक खास अंग की कार्य-प्रणाली की ठीक से देखभाल नहीं कर पाता और आधे-अधूरे और गलत सन्देश भेजता है। फलस्वरूप उस अंग में असामान्य कोशिकाएं बनने लगती हैं और वह कैंसर से ग्रस्त हो जाता है। उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि कैंसर का फैलना (स्थलान्तर या metastasis) किसी नये सदमे के कारण होता है जैसे कैंसर होने का तनाव या कैंसर के लिए दिया जाने वाला क्रूर और कष्टप्रद उपचार (कीमो और रेडियो)।

डॉ. हेमर ने रोगियों को उपचार के साथ मनोचिकित्सा देना भी शुरू कर दिया। उन्होंने अनुभव किया कि जैसे ही मनोचिकित्सा असर दिखाती है और रोगी सदमा से निकल जाता है, कोशिका स्तर पर उसके कैंसर का बढ़ना तुरन्त रुक जाता है और मस्तिष्क के धब्बे गायब होने लगते हैं। अब एक्स-रे में छल्लों की जगह क्षतिग्रस्त केन्द्र के चारो तरफ निरोग होती जलमग्न (healing edema) कोशिकाएं दिखाई देती हैं। शरीर और मस्तिष्क के बीच पुनः अच्छे सम्बंध बनने लगते हैं। इसी तरह का दृष्य उन्होंने  (निरोग होती जलमग्न कोशिकाएं) कैंसर के चारों तरफ भी देखा। इसके बाद कैंसर की गांठें ठीक होती दिखाई देने लगी। इस तरह डॉ. हेमर ने सिद्ध किया कि अनसुलझे सदमे, प्रति-द्वन्द और आघात के कारण कैंसर और अन्य रोग होते हैं। 

 दोस्तों अलसी गुरु डा.ओपी वर्मा हमेशा कोई न कोई नायाब नुस्खा खोज कर लाते हैं, इस बार उन्होंने डा.हैमर के निष्कर्ष पेश किए हैं कि कैंसर का मूल कारण है मनोआघात। विपश्यना गुरु भी यही कहते हैं। मन के विभिन्न भाव तन पर असर डालते हैं। मन में गुस्सा, ईर्ष्या, नफरत, लोभ जैसे नकारात्मक भावों से शरीर में गाँठें बनने लगती हैं। हम जब विपश्यना करते हैं तो ये गाँठें खुलने लगती है और शरीर रोग मुक्त होता चला जाता है। विपश्यना साधना करते समय मन के ये भाव तन पर वेदना और संवेदना के रूप में प्रकट होते हैं। इन्हें निरपेक्ष भाव से देखने पर इनका क्षय होता चला जाता है। हैनीमन की होमियोपैथी भी यही कहती है, मन के विकारों का असर तन पर पड़ता है और शरीर में नाना प्रकार के रोग होने लगते हैं। इसलिए तन को अगर स्वस्थ रखना है तो मन को निर्मल करना परम आवश्यक है। मन में मैल के रहते तन की तंदुरुस्ती कदापि संभव नहीं है। दवा रोग को कुछ समय के लिए भले ही दबा दे, शरीर को रोगमुक्त नहीं कर सकती। 

2 टिप्‍पणियां:

  1. From Dr. N K Singh ............

    ठीक तरीके से धो कर खाएं आम
    कारबाइड एक निश्चिरत कैंसर पैदा करने वाला जहर है. हालांकि, दुनिया में अभी इस विषय पर शोध नहीं होने के कारण पुख्ता प्रमाण नहीं हैं. लेकिन गर्भवती महिलाओं को यदि लगातार कारबाइड से पके आम खिलाये गये, तो बच्चों में जन्मजात विकृति पैदा होने का खुलासा भी सामने आ रहा है.
    हेल्थ अलर्ट
    मेडिकल साइंस दिन में कम-से-कम पांच बार ताजे फलों और पर्याप्त मात्रा में हरी सब्जियों की खाने के मंत्र को बार-बार दोहरा रहा है, क्योंकि इनमें विद्यमान पोषक तत्वों और एंटी ऑक्सीडेंटों की महत्ता अब पूर्णत: उजागर हो गयी है. मगर जहरीले केमिकलों के बिना बाजार में न तो सब्जियां मिल रही हैं, न ही ताजे फल.

    अप्रैल-मई का महीना आते ही मार्केट आमों से महकने लगता है. सबको पता है कि प्राकृतिक ढंग से पके आमों का मिलना संभव नहीं है. वे कारबाइड से पके आम का सेवन करना शुरू कर देते हैं, जिससे तरह-तरह के लक्षणों से युक्त बीमारियों का प्रकोप बढ. जाता है. डॉक्टरों को समझ में नहीं आता कि हो क्या रहा है. अचानक छाती के नीचे जलन का होना, लगातार उलटी होना, पेट में तेज दर्द का होना, डायरिया होना और इसके प्रभाव से रक्तचाप का इतना कम हो जाना कि शॉक की स्थिति हो जाये. इन लक्षणों के अनुसार इलाज करके इन मरीजों के जीवन की रक्षा तो कर पाते हैं, मगर कभी-कभी मामला इससे ज्यादा हो जाता है. इसे लेकर दुनिया के कुछ प्रतिष्ठित मेडिकल र्जनलों में केस रिपोर्ट छपे हैं. कुछ बाों में जो पहले बिल्कुल स्वस्थ थे, अचानक माथे में तेज दर्द, बेतरह उलटी, बेहोशी की हालत और मिरगी के दौरों का हमला होना किसी खास वजह से लिंक नहीं हो पाया, तो डॉक्टरों ने फूड हिस्ट्री ली. अध्ययन से पता चला कि इन बच्चों ने कैल्शियम कारबाइड से पकाये गये आमों को बिना धोए ही ज्यादा मात्रा में खा लिया था.

    यह एक निश्चि त कैंसर पैदा करने वाले जहर हैं. हालांकि, दुनिया में अभी इस विषय पर शोध नहीं होने के कारण पुख्ता प्रमाण नहीं हैं. लेकिन गर्भवती महिलाओं को यदि लगातार कारबाइड से पके आम खिलाये गये, तो बच्चों में जन्मजात विकृति पैदा होने का खुलासा भी सामने आ रहा है.

    आजकल न केवल आम, बल्कि केला,तरबूज,पपीता जैसे फल भी कारबाइड से पकाये जाते हैं. आजकल ट्रांसपोर्ट करने के लिए आमों को का ही तोड़ लिया जाता है. फिर टोकरियों में कारबाइड की पोटली डाल दी जाती है. आमों से उत्पत्र नमी और कारबाइड के रिएक्शन से एसिटीलीन गैस उत्पत्र होता है, जिसके प्रभाव से आम पक जाता है. एसिटीलीन एक खतरनाक नर्व प्वाइजन है और इसके एक्यूट प्रभाव से हेडेक, चक्कर, बेहोशी मिरगी के दौरे और कोमा की स्थिति पैदा हो सकती है.

    व्यक्तिगत तौर पर मेरी लोगों से गुजारिश है कि फलों को खरीदते वक्त हाइ लेवल का अलर्टनेस रखें. जब पके आमों का सीजन आ जाये तभी आमों को खरीदें. कारबाइड से पके आमों को आसानी से पहचाना जा सकता है. यदि आमों के ऊपर उजली-सी पाउडर की परत की दिखे, तो उसे कभी न खरीदें. घर में खूब धोने के बाद ही आम का इस्तेमाल करें. कारबाइड द्वारा फलों को पकाने का मामला इतना व्यापक हो चुका है कि सरकारी तंत्र की सख्ती और व्यापक जागरुकता के बिना इससे निपटना मुश्किल है. मगर कुछ राज्यों की सरकारें तेजी से पहल कर रही हैं. यह मूवमेंट यहां से शुरू हो जाना चाहिए.
    dr nk singh/Prabhat khabar 11th july Patna

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