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गुरुवार, 26 जनवरी 2012

दो होमियोपैथ सम्मानित

पहली बार सरकार ने देश के दो ख्यात होमियो चिकित्सकों को पद्म अलंकरण से नवाजा है। इस बार गणतंत्र दिवस पर पद्म पुरस्कारों से सम्मानितों की सूची में स्व.डा.जुगलकिशोर और डा.मुकेश बत्रा को पद्मश्री से सम्मानित करने की खबर से होमियो जगत में खुशी की लहर है। डा.जुगलकिशोर ने दिल्ली में ५६ वर्ष तक होमियोपैथी की प्रेक्टिस कर हजारों रोगियों को निरोग किया। वे पहले होमियोपैथ हैं जिन्हें चार बार राष्ट्रपति के मानद चिकित्सकों में शामिल होने का सौभाग्य मिला।

गत वर्ष २३ जनवरी २०१२ को वे इस नश्वर शरीर को छोड़ चले गए। उन्होंने अनेक भारतीय दवाओं का परीक्षण कर होमियो औषधि कोष को समृद्ध किया, कई पुस्तकें भी लिखीं। विएना और ग्रीस में आयोजित अंतरराष्ट्रीय होमियो कांग्रेस में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उनकी पंचकार्ड रेपटरी होमियो चिकित्सकों के लिए बड़ी सहायक बनी हुई है। नेहरू होमियो कालेज व अस्पताल तथा सफदरजंग अस्पताल में बतौर कंसल्टंट अनेक वर्षों तक सेवाएं दीं। शारदा बायरन होमियो लेब के वे सलाहकार रहे। वर्तमान में डा.मुकेश बत्रा भी इसी तरह होमियोपैथी की पताका को ऊँचाई पर फहरा रहे हैं। वे १९७४ से होमियोपैथी के क्षेत्र में सक्रिय हैं। २००१ में उन्होंने पाजीटिव हेल्थ फाउंडेशन की स्थापना की। यह संस्थान गरीबों के निशुल्क उपचार में सक्रिय है।

वृद्धाश्रम व अनाथाश्रमों को गोद लेकर वहाँ डा.बत्रा की टीम निशुल्क सेवाएँ देती है। डा.बत्रा से उपचार कराने वालों में अनेक फिल्म सितारे और राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री जैसे बड़े नेता भी शरीक हैं। डा.बत्रा दूरदृष्टि वाले उद्यमी चिकित्सक हैं। टाइम्स आफ इंडिया सहित अनेक पत्र-पत्रिकाओं में उनके नियमित लेख छपते हैं। टीवी पर भी उनके हैल्थ शो होते रहते हैं। डा.बत्रा द्वारा लिखी कईं पुस्तकें युवा होमियो चिकित्सकों का मार्गदर्शन कर रही हैं। होमियो जगत के दो प्रमुख चिकित्सकों को अलंकरण देकर सरकार ने सचमुच सराहनीय कार्य किया है। अब आवश्यकता इस बात की है कि इस सस्ती और प्रभावी चिकित्सा प्रणाली को भी एलोपैथी जैसी सहायता व सम्मान सरकार की ओर से मिलना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो गरीबों को बड़ी राहत मिलेगी। गाँधीजी तो इसे अपने अहिंसक आंदोलन की तरह अहिंसक पैथी कहते थे। इसकी मीठी-मीठी गोलियाँ बच्चे बड़े सभी चाव से खाते हैं।

1 टिप्पणी:

  1. Sachmuch hamre desh ke liye yah chikitsa pranali vardan hai " इस सस्ती और प्रभावी चिकित्सा प्रणाली को भी एलोपैथी जैसी सहायता व सम्मान सरकार की ओर से मिलना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो गरीबों को बड़ी राहत मिलेगी। गाँधीजी तो इसे अपने अहिंसक आंदोलन की तरह अहिंसक पैथी कहते थे। "

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