उस भवन की बनावट ऐसी है कि कोई दूर से देख उसे मंदिर ही कहेगा। लेकिन जब वह वहां जाएगा, तो उसे मालूम होगा कि न तो यह मंदिर है और न ही कोई तीर्थस्थल। यह तो अस्पताल है, जहां भगवान की पूजा नहीं होती बल्कि भगवान की संतानों की शारीरिक व मानसिक व्याधियों का उपचार होता है। और जिसे ‘भाग्योदय तीर्थ अस्पताल व चिकित्सा अनुसंधान केन्द्र’ के नाम से जाना जाता है।
मध्यप्रदेश के सागर में स्थित यह केन्द्र भाग्योदय तीर्थ चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है। महान दिगम्बर जैन संत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की प्रेरणा से इस ट्रस्ट का गठन सन् 1993 में किया गया था। उद्देश्य था गरीब रोगियों को नि:शुल्क या कम से कम शुल्क लेकर उनके लिए स्तरीय उपचार सुविधा उपलब्ध कराना। ट्रस्ट के प्रेरणास्रोत आचार्य विद्यासागर जी अन्य संतों की तरह केवल आध्यात्मिक उपदेश नहीं देते, बल्कि इससे आगे बढ़कर समाज के भौतिक कष्टों को दूर करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं। आचार्य जी का एक प्रसिद्ध मंत्रवाक्य है कि पीड़ित मानवता की सेवा ही ईश्वरीय सेवा है। उनके पारलौकिक ज्ञान और देशभक्ति से पूर्ण प्रवचनों को सुनने के लिए अपार जन समूह उमड़ता है। जैन आचार्य का प्रभा मंडल इतना दीप्त है कि उसे देखने से ही मन झील की तरह शांत हो जाता है। इनके द्वारा कई जन हितकारी कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिनमें स्त्री शिक्षा तथा पशु रक्षा प्रमुख हैं। भाग्योदय तीर्थ अस्पताल भी इसी जनसेवा कार्य का एक अंग है।
अध्यात्म और स्वास्थ्य की यह छोटी सी नगरी भाग्योदय तीर्थ अस्पताल व चिकित्सा अनुसंधान केन्द्र के रूप में सोलह एकड़ में फैली हुई है। गौरतलब है कि यह भूमि आचार्य जी के शिष्य डा.अमरनाथ की थी, जिसे उन्होंने दान कर दिया ताकि उनके गुरु का संकल्प पूरा हो सके और गरीब लोगों का कल्याण हो सके।
भाग्योदय तीर्थ के परिसर में एक फार्मेसी कालेज और पेरा मेडिकल कालेज भी चल रहा है, जहां बड़ी संख्या में छात्र मेडिकल की शिक्षा ग्रहण करते हैं। इस अस्पताल में 300 से ज्यादा बेड हैं। इसमें पर्याप्त मात्रा में गरीबों के लिए आरक्षित हैं। इसके अलावा आपरेशन थिएटर, पैथालोजिकल लैब, एक्स-रे, अल्ट्रा सोनोग्राफी, टीबी क्लीनिक आदि अन्य आधुनिक चिकित्सीय सुविधाएं हैं। मरीजों को किसी चेक अप के लिए बाहर जाने का कष्ट नहीं उठाना पड़ता। अभी तक इस केन्द्र ने हजारों विकलांगों को नि:शुल्क कृत्रिम अंग उपलब्ध करवाये हैं। अस्पताल अपनी पहल से सागर के आस-पास के गांवों में चिकित्सा शिविर लगाता हैं, जिसका लाभ हजारों गरीब ग्रामीणों को मिलता है। जिन लोगों को कोई देखना भी नहीं चाहता, ऐसे कुष्ठ रोगियों को अस्पताल ने पंजीकृत किया है और उनको नियमित रूप से दवाइयां उपलब्ध कराता है। अस्पताल की चारदीवारी में एक मंदिर भी है, जो यहां आये दुखी लोगों को दुख से मुक्ति पाने की आशा प्रदान करता है।
समन्वित चिकित्सा का उपवन
भाग्योदय तीर्थ अस्पताल व चिकित्सा अनुसंधान केन्द्र की एक सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां केवल एक ही उपचार विधि से मरीजों का इलाज नहीं किया जाता। ऐलोपैथी के साथ-साथ होम्योपैथी, आयुर्वेदिक व प्राकृतिक चिकित्सा के चिकित्सक भी यहां मौजूद हैं। मरीज के पास किसी भी उपचार विधि से इलाज करवाने का विकल्प हमेशा उपस्थित रहता है। अस्पताल की एम्बुलेंस ‘न नुकसान न फायदा’ के आधार पर अपनी सेवाएं मरीजों को देती है। केन्द्र का ऐसे 600 लोगों से सम्पर्क है जो आपातकाल की स्थिति में किसी मरीज के लिए अपना रक्तदान कर सकते हैं। केन्द्र उन मरीजों को आर्थिक सहायता भी मुहैया कराता है जिन्हें इलाज के लिए किसी कारणवश सागर शहर से बाहर के बड़े अस्पतालों में भेजना पड़ता है। भाग्योदय तीर्थ में इलाज कराने वाले अधिकांश लोगों की आर्थिक स्थिति बड़ी कमजोर होती है इसलिए अस्पताल उन्हें बहुत कम कीमत पर दवाइयां देता है।
मेवा नहीं सेवा ही लक्ष्य
भाग्योदय तीर्थ में अपनी सेवाएं दे रहे डाक्टरों के लिए चिकित्सा व्यवसाय नहीं है बल्कि जनसेवा का माध्यम है। सभी डाक्टर आचार्य विद्यासागर जी के विचारों का अनुकरण करते हैं तथा अपने स्वभाव को उनके स्वभाव जैसा बनाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। इसके लिए वो कठिन जैन तप साधना नियमित रूप से करते हैं। अस्पताल के प्रबंध निदेशक डा. अमरनाथ एमबीबीएस, एमडी सहित डा.नीलम जैन, डा.सुभाष जैन, डा.रेखा जैन, डा.रश्मि जैन आदि ऐसे ही लोग हैं जिन्होंने अपने जीवन को विद्यासागर जी के उद्देश्यों तथा जनसेवा के लिए समर्पित कर दिया है। इस शृंखला में डा.अमित जैन का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। डा.अमित आज के युवा वर्ग का हिस्सा हैं। लेकिन अपनी उम्र के अन्य युवाओं की तरह उनकी मंजिल अमेरिका, यूरोप या किसी महानगर में बसकर ऐशो-आराम की जिंदगी बसर करना नहीं है। वे तो सागर जैसे छोटे शहर में रहकर आचार्य जी द्वारा बताये गये मार्ग के अनुसार आध्यात्मिक साधना और मानवता की सेवा करना चाहते हैं।
भाग्योदय तीर्थ अस्पताल और अनुसंधान केन्द्र को प्रचलित अर्थ में तीर्थ तो नहीं कहा जा सकता लेकिन यह स्थान किसी तीर्थ से कम भी नहीं है। भारत देश के सभी जिलों को ऐसे तीर्थ स्थलों की आवश्यकता है। यह आलेख अलसी गुर डा.ओपी वर्मा ने मुझे मेल किया था, जिसे मैं अपने ब्लाग में जस का तस दे रहा हूँ। काश ऐसे केन्द्र हर जिलों के प्रमुख नगरों में खुले तो पीड़ित मानवता की सेवा हो सकती है।
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