कुल पेज दृश्य

रविवार, 25 दिसंबर 2011

विश्वसनीय नहीं होती कोलेस्ट्राल की जाँच

भारत हर तरह के मानदंडों की अनदेखी के लिए कुख्यात है। हृदय विशेषज्ञों का कहना है कि ज्यादातर प्रयोगशालाओं में होने वाली कोलेस्ट्रॉल की पैथ लैब रिपोर्ट सही एवं विश्वसनीय नहीं होती। राजधानी नईदिल्ली के फोर्टिस एस्कॉर्ट हास्पीटल के वरिष्ठ इंटरनेशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ.विनय सांघी कहते हैं कि कोलेस्ट्रॉल की जांच के मामले में मानदंडों का सबसे अधिक उल्लंघन खराब और अच्छे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा दर्शाने में होता है। यही नहीं इन दोनों मामलों में जो न्यूनतम एवं अधिकतम मात्रा आज दर्शाई जा रही है वह वर्षों पुरानी है। जांच प्रयोगशलाओं को लेकर भारत में कोई स्पष्ट मानक नहीं है और खास तौर पर कोलेस्ट्रॉल को लेकर तो कोई मानक ही नहीं है। पूरी दुनिया में अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन और अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी द्वारा तय मानक ही चलते हैं। इन दोनों संस्थाओं द्वारा वर्षों पूर्व तय किए गए मानक ही राजधानी दिल्ली सहित पूरे देश के प्रयोगशलाओं की रिपोर्ट में दर्शाए जाते हैं। जब कोई मरीज डॉक्टर के कहने पर जांच कराने जाता है, तो उसकी रिपोर्ट में एक ओर न्यूनतम एवं अधिकतम की सीमा दर्शाई गई होती है, जिसके आधार पर मरीज खुद को स्वस्थ मान लेता है, जबकि आज की जीवनशैली व परिस्थियों में बेहद बदलाव आ चुका है।
चिकित्सक की सलाह पर मरीज खुद को जांच रिपोर्ट के आधार पर सामान्य बताते हैं, लेकिन वास्तव में बीमारी की शुरूआत उनमें हो चुकी होती हैं। यदि ऐसे मरीज सही समय पर इलाज ले लें तो ह्रदय की धमनियों में रूकावट, हृदयाघात और लकवा जैसी स्थितियों से बच सकते हैं, लेकिन गलत रिपोर्ट के कारण वे सही समय पर इलाज नहीं ले पाते। डॉ.विनय सांघी के अनुसार मौजूदा समय में प्रयोगशालाओं की रिपोर्ट में 'लो डेंसिटी कोलेस्ट्रॉल" की मात्रा 100 से 150 एमजी प्रतिशत तक दर्शाई गई होती हैं, जबकि यह 70 से कम होनी चाहिए। इसी तरह कुल कोलेस्ट्रॉल की मात्रा रिपोर्ट में 250 से 300 एमजी प्रतिशत दर्शाई गई होती है, जबकि यह 180 से नीचे होनी चाहिए। लो डेंसिटी कोलेस्ट्रॉल यदि अधिक होगा तो धमनियों में रूकावट, हार्टअटैक और लकवा का अटैक आ सकता है। हाई डेंसिटी कोलेस्ट्राल एक सफाईकर्मी की तरह है, जो धमनियों की सफाई करता है। इसकी मात्रा 50 एमजी प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए, लेकिन लैब की रिपोर्ट पर 40-50 दर्ज होता है। डा.सांघी का सुझाव है कि प्रयोगशाला प्रबंधकों को चाहिए कि वे इस रिपोर्ट को या तो अपडेट करते रहें या फिर कुछ लिखे ही नहीं। इससे मरीजों में दुविधा की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी। आयुर्वेद में वात, पित्त और कफ के असंतुलन की स्थिति को रोग और संतुलन को योग माना गया है। कोलेस्ट्राल भी कफ दोष के तहत आता है। इसका संतुलन अर्थात एचडीएल है और असंतुलन एलडीएल।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें