सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामय। अगर हम एक आदर्श जीवनशैली अपना लें, तो रोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। मैंने अपने कुछ अनुभूत प्रयोग यहां पेश करने की कोशिश की है। जिसे अपना कर आप भी स्वयं को चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं। सुझावों का सदैव स्वागत है, कोई त्रुटि हो तो उसकी तरफ भी ध्यान दिलाइए। ईमेल-suresh.tamrakar01@gmail.com
कुल पेज दृश्य
शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011
ठंड का राजा गराड़ू
जमींकंद या गराड़ू, जिसे अंग्रेजी में याम (yam) कहते हैं। यह वनस्पति शास्त्र के अंतर्गत डायस्कोरियेसी परिवार का है। यह एक प्रकार का कंद है जो ठंड के दिनों में बहुतायत से आता है। इसकी तासीर गर्म होती है। हमारे इंदौर और मालवे में ठंड के दिनों में गराड़ू हाट-बाजार में बहुतायत से आता है। रतलाम क्षेत्र का गराड़ू अच्छा माना जाता है। इसमें स्टार्च के अलावा विटामिन सी और बी-६ भरपूर होता है। मेगनेशियम और पोटेशियम का भी यह भंडार है। कुछ मात्रा में सोडियम भी होता है। इसीलिए हृदयरोगियों के लिए इसे मुफीद माना जाता है।
उदर संबंधी अनेक रोगों में भी यह कारगर है। होमियोपैथी में इसकी दवा है dioscorea (डायस्कोरिया) यह दवा लक्षण अनुसार अनेक उदररोग जैसे कब्ज, अतिसार, डिसेंट्री आदि में दी जाती है। हृदयरोग में एंजाइना के लिए यह दी जाती है। यह मूलतः अफ्रीका की उपज है, सोलवीं शताब्दी में यह पुर्तगाल, स्पेन, ब्राजील और गुयाना होते हुए अमेरिका पहुँचा। गराड़ू आकार में चार-पाँच फुट लंबे और सत्तर किलो तक वजनी भी होते हैं। ये सफेद के अलावा पीले, पर्पल और पिंक रंगों के भी होते हैं। नाइजीरिया में इसे जी कहते हैं वहाँ अगस्त माह में जब इसकी नई फसल आती है तो इरी जी और लावाजी महोत्सव मनाए जाते हैं। इसके तरह-तरह के व्यंजन बनाकर खाते हैं और रात भर नाच गाना चलता है। प्रार्थना की जाती है और पुराने वर्ष के प्रति शुक्रिया अदा किया जाता है। नई फसल के त्यौहारों की परंपरा लगभग हर जगह मिल जाती है। हमारे यहाँ भी पोंगल, बैसाखी आदि नई फसल के त्यौहार हैं। भारत के विभिन्न भागों में इसे क्षेत्रिय नामों से मनाया जाता है। गुजरात के दोहद जिले में गराड़ू नामक गाँव भी है।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें