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शनिवार, 19 नवंबर 2011

भैंस दुह कर कुत्ते को पिलाना

हिन्दी में एक कहावत है भैंस दुह कर कुत्ते को पिलाना। अर्थात महँगे दूध को व्यर्थ बहाना। कुछ लोग ऐसी व्यर्थ कवायद जीवन भर करते रहते हैं। ठंड के दिनों में खिड़की दरवाजे सब बंद कर रजाई ओढ़ कर पंखा चलाते हैं। साथ में मच्छर अगरबत्ती या आलआऊट जैसी चीजें भी जलाते हैं। ऐसा करने वाले अशिक्षित या अल्पशिक्षित नहीं हैं। बड़े-बड़े डिग्रीधारी हैं, कोई विज्ञान का स्नातक है तो कोई स्नातकोत्तर है, कोई इंजीनियर है तो कोई वैज्ञानिक है। ऐसे लोगों के बारे में मेरी निरक्षर माँ निमाड़ी में एक कहावत कहा करती थी-'भण्या पर गुण्या नी', मतलब पढ़ लिख कर डिग्रियाँ तो खूब ले ली मगर असल ज्ञान आया ही नहीं खिड़की दरवाजे सब बंद कर दोगे तो ताजा प्राणवायु कैसे मिलेगी। जो कार्बन डाय आक्साइड छोड़ रहे हो, वही पंखा नीचे धकेलेगा और वापस साँसों के जरिए फेफड़ों में जाएगी। नींद ठीक से नहीं आएगी, सुबह जब जागोगे तो जी अलसाया सा लगेगा। ताजगी नहीं लगेगी। असल में मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी से बेहतर कोई विकल्प नहीं है। लेकिन कुछ लोगों को मच्छरदानी लगाने में घुटन लगती है, दरवाजे-खिड़की बंद कर मच्छर अगरबत्ती जलाने में घुटन नहीं लगती। मैंने कहीं पढ़ा था कि एक मच्छर अगरबत्ती १०० सिगारेट के धुँए जितनी हानि पहुँचाती है।
कुछ लोग फुल स्पीड में पंखा चला कर सोते हैं, सुबह उठते हैं तो बदन जकड़ने या दर्द करने की शिकायत करते हैं। शरीर पर लगातार तेज हवा के थपेड़े पड़ने से बदन तो दुखेगा ही। सोते वक्त कमरे की खिड़की थोड़ी खुली रखें, अगर ठंड कम है तो रजाई की जगह चद्दर या पतला ब्लेंकेट ओढ़े। पंखा बहुत जरूरी हो तो ही चलाएं। बिजली और शरीर दोनों का फायदा है। गर्मी-सर्दी सब बर्दाश्त करने की शक्ति शरीर में होनी चाहिए। हम लगातार पंखे, कूलर या ऐसी चला कर शरीर को कमजोर कर रहे हैं। कुदरत ने सब तरह के मौसम सोच समझ कर बनाए हैं। थोड़ी गर्मी बर्दाश्त करेंगे तो शरीर से पसीना निकलेगा और अंदर की गंदगी उसके साथ बाहर निकल जाएगी। लेकिन आधुनिक सभ्यता के कारण त्वचा इस कार्य को तो भूल ही गई है। हम श्रम भी नहीं करते कि पसीना निकले।

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