सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामय। अगर हम एक आदर्श जीवनशैली अपना लें, तो रोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। मैंने अपने कुछ अनुभूत प्रयोग यहां पेश करने की कोशिश की है। जिसे अपना कर आप भी स्वयं को चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं। सुझावों का सदैव स्वागत है, कोई त्रुटि हो तो उसकी तरफ भी ध्यान दिलाइए। ईमेल-suresh.tamrakar01@gmail.com
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गुरुवार, 10 नवंबर 2011
क्या फायदा ऐसे रिकार्ड से
सिवनी मध्यप्रदेश के कुछ युवक-युवतियों ने ४५ हजार वर्ग फुट में रंगोली बनाई। ४५ क्विंटल रंग और रंगोली इसमें महज इसलिए बर्बाद कर दी कि गिनेस बुक में नाम शामिल कराना है। कोई बड़ा सा केक बनाते हैं तो कोई डोसा बनाते हैं, कोई मुंह में ५०० स्ट्रा भर कर अपनी बहादुरी दिखाता है, तो कोई दाँतों से ट्रक खींचता है। केवल रिकार्ड की खातिर लोग अपनी ऊर्जा, समय और धन की बर्बादी करते हैं। ऐसे अनुत्पादक कामों से भला वे समाज और देश का क्या भला करते हैं। इसके बजाय कोई पेड़ लगाने, पानी बचाने, भूखों को भोजन कराने, रक्तदान करने, लोगों को साक्षर बनाने जैसे कार्य करें तो स्वयं और समाज दोनों का भला हो सकता है। पिछले दिनों एक सकारात्मक समाचार उड़ीसा से आया था। एक शिक्षक हैं जो बिना वेतन या पैसा लिए स्कूल में वर्षों से बच्चों को पढ़ा रहे हैं। ऐसे कार्यों में युवा पीढ़ी को लगना चाहिए और ऐसे सकारात्मक रिकार्ड बनाना चाहिए। गिनेस बुक और मीडिया को भी चाहिए कि वे अनुत्पादक और फिजूल के रिकार्डों को तरजीह न दें।
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