
दिवाली को बीते चार दिन गुजर गए मगर दिवाली का भूत लगता है अभी लोगों के सिर से उतरा नहीं। अनेक घरों पर अभी भी चीनी झालरें (बिजली की सीरीज) लटकी हुई हैं और दिन ढलते ही रोशन भी होती हैं। चीन ने सस्ती सुंदर झालरें हिन्दुस्तान भेज कर हम भारतीयों का मन मोह लिया। हम उन पर इतने फिदा हैं कि दिवाली बीतने के बाद भी उन्हें जुदा करने का मन ही नहीं करता। फिर भले ही हमारे मुल्क की कीमती बिजली फिजूल क्यों न जलती रहे। हमारे गाँववासी अपने घर को रोशन करने के लिए भले ही तरसते रहें। उन्हें आवश्यक कार्य के लिए भी बिजली नहीं मिले मगर हमें अपने घरों को रोशनी से नहलाने के लिए खूब बिजली चाहिए। यह भी भूल जाते हैं कि बिजली बनाने पर कितना कोयला और परिश्रम लगता है। उस कोयले के जलने से कितना कार्बन का जहर वातावरण में घुलता है। कईं लोग तो रात-रात भर बिजली की झालरें जलाते रहते हैं। बेचारों को भ्रम है कि ऐसा करने से घर में लक्ष्मी आती है। अरे दोस्तों जब बिजली का भारी भरकम बिल आएगा तो बची खुची लक्ष्मी भी चली जाएगी। अगर बिजली जलाते रहने से लक्ष्मी आती तो सारे स्ट्रीट लाइट के खंभे सोने के हो जाते। मैं तो दिवाली के दिनों में रात को सोते समय झालरें बुझा देता हूँ। दीप पर्व बीतते ही झालरें निकलवा दी, तो बहू कहने लगी पापा अभी मोहल्ले में किसी ने भी झालरें नहीं निकाली और आपने अभी से निकलवा दी। मैंने कहा-कोई मूर्खता करे तो क्या हमें भी करना चाहिए। लेकिन आजकल हो यही रहा है, लोग देखादेखी मूर्खता कर रहे हैं।
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