
आज विनोबा जयंती है। इस सच्चे गाँधीवादी को मीडिया ने बिल्कुल भुला दिया। अब ९-११ इतना महत्वपूर्ण हो गया है कि उसकी बरसी पर पेज के पेज रंगे जा रहे हैं। लेकिन भूदान जैसे अनूठे आंदोलन के प्रणेता विनोबा के लिए मीडिया के पास जरा सी जगह भी नहीं है। इस महान संत ने भूदान यज्ञ के लिए १३ साल तक पदयात्राएं की लाखों एकड़ भूमि, भूपतियों से दान में हासिल की और भूमिहीनों को निशुल्क बाँट दी। भूदान के लिए वे इतना पैदल चले कि यह सफर, पृथ्वी की अनेक प्रदिक्षणा करने के समान है। आजादी के आंदोलन में भाग लिया। चंबल के खूँखार दस्युओं से आत्मसमर्पण करवाया। स्त्रियों के सशक्तिकरण का आंदोलन छेड़ा। नशामुक्ति और छुआछूत मिटाने के लिए सतत संघर्ष किया। सैकड़ों पुस्तकें लिखीं। भारत सरकार ने उन्हें भारतरत्न से नवाजा, मेगसाय साय पुरस्कार से भी उन्हें सम्मानित किया गया। उनका भूदान आंदोलन दुनिया के समक्ष अपने आपमें एक अनूठी मिसाल है। इसकी सफलता के बाद उन्होंने ग्रामदान आंदोलन भी छेड़ा था, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल पाई। वैसे तो उनकी लिखी अनेक पुस्तकें हैं, लेकिन गीता प्रवचन को वे शाश्वत साहित्य की संज्ञा देते थे। यह पुस्तक जब वे स्वाधीनता आंदोलन के समय जेल में थे, तब कैदियों के समक्ष गीता पर दिए गए उनके प्रवचनों पर आधारित है। इसकी लाखों प्रतियाँ बिक चुकी हैं और २२ भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है। यहाँ इसका एक अंश प्रस्तुत है-
चित्त की एकाग्रता में सहायक दूसरी बात है-जीवन की परिमितता। हमारा हर कार्य नपातुला होना चाहिए। गणित शास्त्र का यह रहस्य हमारी सभी क्रियाओं में आ जाना चाहिए। औषधि जैसे नापतौल कर ली जाती है, वैसे ही आहार निद्रा भी नपी-तुली होनी चाहिए। प्रत्येक इंद्रिय पर पहरा बैठाना चाहिए। मैं ज्यादा तो नहीं खाता, अधिक तो नहीं सोता, जरूरत से ज्यादा तो नहीं देखता। इस प्रकार सतत बारीकी से जाँच करते रहना चाहिए।
जो बिकता है ... मिडिया उसे ही बढावा देती है ... सरकारों को कोसना ... जनता को सुहाता है क्योंकि हम भारतीयों की निंदा में रूचि स्वभावतः ही ज्यादा होती है ... और आपेक्षाकृत यह आसान काम है ... बनिस्बत इसके की किसी भी समस्या के समाधान में उसकी क्या भूमिका हो ... संत विनोबा के योगदान सचमुच अमूल्य है ... यदाकदा ने उनका स्मरण करके ... एक लिक से हटकर काम किया है ... साधुवाद /
जवाब देंहटाएं