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गुरुवार, 8 सितंबर 2011

अमृतफल का श्रीगणेश


अमृत फल आँवला का श्रीगणेश हो गया। कल दफ्तर से लौटते वक्त गुरुवार के हाट में गया,तो एक ठेले पर आँवले दिखाई दिए। दस रुपए किलो,कितने सस्ते। हालांकि अभी छोटे आकार के हैं और उतने अच्छे भी नहीं हैं। फिर भी कुछ नहीं से कुछ अच्छा है। अब ये अप्रैल-मई तक हमारा साथ निभाएंगे। रोज सुबह तीन-चार आँवले का रस निकाल कर शहद के साथ सेवन करने से अपार ऊर्जा मिलती है। मधुमेह वाले मधु की जगह पानी डाल कर थोड़ा डायल्यूट कर लें, ताकि कसैलापन कम हो जाए। वैसे आयुर्वेद में मधुमेह रोगी को मधु और गुड़ वर्जित नहीं माना जाता। फिर भी परहेज करें तो ठीक है। आँवला शीतकाल में सर्दी से लड़ने की ताकत देता है। वर्षाकाल में शरीर में जमा कफ का निष्कासन कर देता है। यह त्रिदोषनाशक है। शरीर में तीनों दोषों वात, पित्त और कफ का संतुलन बनाए रखता है। कुदरत हमारा कितना ध्यान रखती है। जिस मौसम में जो हमारे शरीर को आवश्यक हो देती है। आँवले के बाद मार्च से बेलफल की आमद होने लगती है, जो पूरी गर्मी भर आपको तपन से राहत देते हैं। आँवला और बेल पर इसी ब्लाग में पूर्व में विस्तार से चर्चा की जा चुकी है। चाहें तो उसे देख सकते हैं।
पुनश्चः सेहत के संपादक श्री प्रदीप जैन ने बताया कि इस मौसम में आँवले का सेवन नहीं करना चाहिए। उन्होंने अपनी पत्नी को दिया था, तो उन्हें एलर्जी हो गई और शरीर पर चकत्ते निकल आए। अभी आँवला कच्चा होता है। उनकी माताजी ने एक पुराना दोहा बताया जो इस प्रकार है-

क्वार करेला, कार्तिक दही।

अगहन आँवला, पूस मही।

जो इन्हें खाए वो मरे नहीं तो डरे सही।
अर्थात क्वार मास में करेला और कार्तिक में दही नहीं खाना चाहिए। इस तरह अगहन में आँवला और पौष में मही माने छाछ का सेवन वर्जित माना गया है। अगर कोई इस नियम का पालन नहीं करता है, तो वह मरे भले ही नहीं बीमार जरूर पड़ेगा। लेकिन इस मामले में मेरा अनुभव अलग है, मैं आँवला ले रहा हूँ और मुझे कोई एलर्जी या विपरीत प्रभाव नजर नहीं आया। असल में शरीर में अगर विजातीय पदार्थ जमा है तो आँवले के सेवन से वह एलर्जी के रूप में प्रकट हुआ होगा। नए गेहूँ के बारे में भी कहा जाता है कि नए गेहूँ नहीं खाने चाहिए। लेकिन कई लोग खाते हैं और उन्हें कोई नुक्सान नहीं होता। हर व्यक्ति की प्रकृति भिन्न-भिन्न होती है।

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