सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामय। अगर हम एक आदर्श जीवनशैली अपना लें, तो रोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। मैंने अपने कुछ अनुभूत प्रयोग यहां पेश करने की कोशिश की है। जिसे अपना कर आप भी स्वयं को चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं। सुझावों का सदैव स्वागत है, कोई त्रुटि हो तो उसकी तरफ भी ध्यान दिलाइए। ईमेल-suresh.tamrakar01@gmail.com
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शुक्रवार, 2 सितंबर 2011
चटोरा मैं नहीं जीवाणु
शालिन भाषा में चटोरे को शौकीन कहते हैं। अमुक व्यक्ति खाने-पीने का बड़ा शौकीन है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक शोध में पता लगाया है कि हमारे पाचन तंत्र में रहने वाले जीवाणु भी अलग-अलग तरह के स्वाद के शौकीन होते हैं। कुछ जीवाणु अधिक वसा वाला फास्ट फूड पसंद करते हैं तो दूसरे अधिक रेशों वाला भोजन। अर्थात इस शोध की माने तो मनुष्य चटोरा नहीं होता, जीवाणु उसे ऐसा बनाते हैं।
अमेरिकी विज्ञान पत्रिका 'साइंस" में प्रकाशित शोध में पेनसिलवानिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ता डा.जेम्स लुइस ने यह दावा किया है। लुइस ने कहा-हम जानते हैं कि हमारे पूरे शरीर में बड़ी संख्या में अलग-अलग तरह के जीवाणु निवास करते हैं। यह बेहद रोचक है कि एक व्यक्ति के पेट में पाए जाने वाले जीवाणु और उसकी खानपान की आदतों के बीच काफी समानताएं हो सकती हैं। शोधकर्ताओं ने अपने इस शोध के तहत 98 व्यक्तियों का अध्ययन किया। उन्होंने जीवाणुओं के जीन का पता लगाने वाली अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करके इन व्यक्तियों के पेट में रहने वाले जीवाणुओं को दो श्रेणियों में बांटा, पहली श्रेणी को नाम दिया गया 'बैक्टीरोइड्स। इस किस्म के जीवाणु माँस और वसा से भरपूर पश्चिमी भोजन के शौकीन होते हैं दूसरी श्रेणी 'प्रेवोटेला" में आने वाले जीवाणु उच्च कार्बोहाईड्रेट वाले खानपान जैसे राइस, आलू वगैरह को तरजीह देते हैं। वैज्ञानिक अब यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या इस शोध का इस्तेमाल करके आँतों से संबंधित गंभीर 'क्रोहन रोग" को महज खानपान की आदतों में बदलाव लाकर ठीक किया जा सकता है। उन्होंने शोध के दौरान अगले दस दिनों तक पाँच-पाँच लोगों को दो वर्गों में बांटा। एक वर्ग को उच्च वसा वाला भोजन और दूसरे वर्ग को अधिक रेशेदार भोजन दिया। उन्होंने पाया कि 24 घंटों के अंदर ही जीवाणुओं की संरचना बदलने लगी। हालांकि डा.लुइस ने कहा कि खानपान की आदतों के जरिए पेट में निवास कर रही जीवाणुओं की पूरी फौज को ही बदलने के लिए लंबे समय तक खानपान की आदतों में सुधार की कसरत जरूरी होती है।
प्राकृतिक चिकित्सा शास्त्र तो बरसों से यह कहता आ रहा है कि खानपान की आदतें ही व्यक्ति का स्वभाव तय करती हैं। कहावत प्रसिद्ध है कि जैसा खाए अन्न वैसा बने तन-मन। आयुर्वेद में भी भोजन को तामसी, राजसी और सात्विक तीन श्रेणियों में बाँटा गया है। अमेरिकी शोधकर्ता उल्टे हाथ से नाक पकड़ रहे हैं।
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चलो यहाँ भी वैज्ञानिकों और जीवाणुओं ने मुझे अपनी जिम्मेवारी से बचा लिया ... !!!
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