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शनिवार, 20 अगस्त 2011

दिव्य वृक्ष हरसिंगार


हरसिंगार की इन दिनों बहार आई है। प्रातः भ्रमण को जाता हूँ तो जिन घरों के आँगन में हरसिंगार का पेड़ लगा है, उसके आसपास जमींन पर पुष्पों की चादर बिछ जाती है। भीनी-भीनी खुशबू वाले सफेद पंखुड़ी और आरेंज कलर की डंडी लिए ये फूल बड़े ही सुंदर होते हैं। हरसिंगार को और भी कईं नामों से जाना जाता है जैसे-शैफाली, पारिजात, कोरल जैसमिन, ट्री आफ सारो, क्वीन आफ द नाइट और वनस्पति शास्त्र में इसे निक्टेन्थस एरबोरेट्रिसटिस (Nyctanthes arbortristis)कहते हैं। आयुर्वेद के अनुसार हरसिंगार का समूचा पेड़ औषधि गुणों से युक्त है।
पौराणिक कथा है कि समुद्र मंथन में जो अनेक वस्तुएं प्राप्त हुईं उनमें एक हरसिंगार भी है। इसे दिव्य वृक्ष के नाम से जाना जाता है। यह भी कथा है कि भगवान कृष्ण ने इसे इंद्र के उद्यान से लाकर पृथ्वी पर लगाया था। यह अनेक बीमारियों में काम आता है शायद इसीलिए इसका नाम ट्री आफ सारो चल पड़ा होगा। उदररोग, कब्ज, बवासीर, स्त्रीरोग, पीलिया, कैंसर, ज्वर, मलेरिया, जोड़ों का दर्द, गठिया, आमवात, साइटिका, अतिसार जैसे रोगों में इसके पुष्प, पत्तियाँ, छाल और बीजों से उपचार करने की परंपरा छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल में बहुतायत से होती रही है। इसके बीजों का पेस्ट बना कर खोपड़ी पर लगाने से गंजापन दूर होता है। बीजों को उबाल कर उससे सिर धोने पर बाल घने, डेंड्रफविहिन और जूंरहित हो जाते हैं। सूखी खाँसी में पत्तों का रस शहद के साथ दिया जाता है। इसकी तीन पत्ती और पाँच काली मिर्च प्रतिमास तीन दिन लगातार लेने से अनेक स्त्रीरोगों जैसे कष्टप्रद मासिक, अनियमित मासिक आदि में लाभ होता है। बवासीर में रोज एक बीज पानी के साथ खाने और बीजों का पेस्ट मस्सों पर लगाने की सलाह दी जाती है। पत्तियों को सरसों के तेल में उबाल कर वह तेल दाद-खाज वाले स्थान पर लगाने से आराम आता है। साइटिका, जोड़ों के दर्द में पत्तियों व फूलों का काढ़ा बना कर प्रतिदिन लेने का विधान है। अगर आँतों में कृमि हो तो पत्तियों का रस थोड़ा सेंधा नमक मिला कर सात दिन तक रोज देने से कृमियों से छुटकारा मिल जाता है।
होमियोपैथी में भी इसकी दवा Nyctanthes arbortristis के नाम से मिलती है। इस दवा का मूल अर्क साइटिका, गठिया, संधिवात में दस-दस बूँद आधा कप जल के साथ प्रतिदिन देने से आराम मिलता है।

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