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शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

सत्याग्रह की शक्ति से साक्षात्कार


सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह की ताकत के बारे में अभी तक केवल पढ़ा और सुना ही था। कैसे महात्मा गाँधी ने आजादी के आंदोलन के दौरान अपने इन तीन अस्त्रों से अंग्रेजी हुकुमत को हिला कर रख दिया था। और कैसे उनकी एक आवाज पर लोग सड़कों पर निकल आते थे, इसका प्रत्यक्ष अहसास अण्णा के आंदोलन ने करा दिया। दरअस्ल आजादी के बाद की पीढ़ी इन शस्त्रों से अनभिज्ञ सी ही है। आज देखिए अण्णा के पीछे कितने लोग हैं। पूरे देश में एक ज्वार सा उमड़ा है। यह सब सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह का ही कमाल है। अण्णा ने पहले इसे अपने जीवन में उतारा, फिर अपने गाँव रालेगण सिद्धी में इनका इस्तेमाल कर वहाँ की कायापलट की। फिर अपने राज्य में वे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़े। अब पूरा देश उनका कैनवास है। जो सरकार उन्हें कहीं भी अनशन की इजाजत नहीं दे रही थी और उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया, आखिर उसे झुकना पड़ा और पूरा रामलीला मैदान सौंपना पड़ा। लोग स्वप्रेरणा से अण्णा के पीछे निकल रहे हैं। कोई जुलूस निकाल रहा है, कोई कारोबार बंद कर उन्हें समर्थन दे रहा है, तो कोई दूकानों पर काले झंडे लगा रहा है। विदेशों में भी अण्णा लहर चल पड़ी है। कुछ लोग आशंका भी खड़ी कर रहे हैं कि जनलोकपाल बिल पास होने से क्या भ्रष्टाचार मिट जाएगा, जो इस देश की रग-रग में स्थान बना चुका है। यह असल में निराशावादी दृष्टिकोण है। एक शुरूआत तो हुई है, सुधार धीरे-धीरे आएगा। जो बिल इतने बरसों से बिल में पड़ा था, वह सामने तो आया है। अगर देखा जाए तो सूचना के अधिकार कानून को लागू करवाने के पीछे भी अण्णा की ही ताकत रही है। अभी भ्रष्टाचारियों को कोई भय नहीं था, इस कानून के बाद भय रहेगा, सजा होने का। अण्णा के आंदोलन की वजह से ही जस्टिस सोमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव राज्यसभा ने एक झटके में पारित कर दिया। संसदीय इतिहास की यह पहली घटना है। वरना इसके पूर्व राजनीतिक स्वार्थ के चलते जस्टिस रामास्वामी के मामले में ऐसा नहीं हो सका था। अब अण्णा के आंदोलन और चरित्र से प्रेरणा लेकर लोगों को स्वयं सुधार की पहल करनी चाहिए। पहले छोटे-छोटे भ्रष्ट आचार में सुधार हो फिर बड़े कदम उठाए जाएं।

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