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शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

गुरु वंदना


गुरु पूर्णिमा पर सब गुरु वंदना करते हैं। जिंदगी भर व्यक्ति किसी न किसी से कुछ न कुछ सीखता रहता है। पूरी जिंदगी में हमें अनेक गुरु मिलते हैं। सर्वप्रथम तो हमारे माता-पिता हमारे गुरु होते हैं। उसके बाद जब पाठशाला जाने लगते हैं, तो वहाँ जो शिक्षक मिलते हैं वे हमारे शैक्षणिक गुरु हैं। मेरे जीवन में भी चार महा गुरुओं का जो योगदान रहा वह मैं कभी नहीं भूल सकता। ऐसी एक शख्सियत थी, डा.वासुदेव शर्मा। वे दैहिक रूप से अब भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी सिखावन मेरे परिवार व मित्रों के सदैव काम आती है। वे मेरे आध्यात्मिक और होमियोपैथिक गुरु रहे। करीब तीस साल तक सतत उनका साथ रहा। वे होमियो चिकित्सक, आदर्श शिक्षक और अच्छे लेखक अर्थात थ्री इन वन थे। हिन्दी में कह सकते हैं त्रिमुखी प्रतिभा की त्रिवेणी। उनके गुरु थे स्वामी अखंडानंदजी महाराज चित्रकूट वाले। उन्होंने अपने गुर के बारे में गुरुवंदना नाम से एक पुस्तक लिखी डाली थी, जिसमें गुरु की प्रशंसा में अनेक दोहे हैं। एक वानगी पेश है-
तुम सागर से भी गहरे,
नक्षत्रों के भी ऊपर,
यह विश्व विराट छिपा है,
गुरुदेव आपके भीतर।।
गुरु की महिमा पर कितनी सुंदर काव्य रचना है। डा.शर्मा ने व्यायाम की महत्ता पर भी व्यायाम वाटिका पुस्तक लिखी है। कोमल किरणें आ गईं चली करोड़ों कोस, भैया उठ व्यायाम कर लगी चमकने ओस। शर्माजी से मेरा परिचय मेरी माताजी की वजह से हुआ। माताजी का दांया हाथ जकड़ गया था। सारे इलाज असफल रहे। वे अक्सर रोने लगती कि ऐसे में बुढ़ापा कैसे कटेगा। हमारे अग्रज के मित्र डा.केएल भार्गव ने होमियो उपचार का सुझाव दिया। तब हम माताजी को डा.शर्मा के क्लिनिक ले गए। उनके उपचार से माताजी का हाथ एकदम सही हो गया और मृत्युपर्यंत ठीक रहा। तब से मैं और मेरा परिवार शर्माजी और होमियोपैथी के मुरीद हो गए। गुरु पूर्णिमा पर ऐसे महान गुरु की स्मृति को नमन।

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