सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामय। अगर हम एक आदर्श जीवनशैली अपना लें, तो रोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। मैंने अपने कुछ अनुभूत प्रयोग यहां पेश करने की कोशिश की है। जिसे अपना कर आप भी स्वयं को चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं। सुझावों का सदैव स्वागत है, कोई त्रुटि हो तो उसकी तरफ भी ध्यान दिलाइए। ईमेल-suresh.tamrakar01@gmail.com
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शनिवार, 16 जुलाई 2011
गुरु वंदना-2
दूसरे गुरु हैं पूज्य श्री सत्यनारायण गोयन्का, जो जीवनदायिनी विपश्यना का उजियारा पूरे जग में फैला रहे हैं। गोयान्काजी की पुस्तक आत्मदर्शन 1989 में पहली बार मुझे पढ़ने का प्रसंग आया। पुस्तक पढ़ कर बेहद प्रभावित हुआ एक ही बार में सारी पुस्तक पढ़ डाली। विपश्यना के बारे में जानकर मन में इच्छा जागी कि मैं विपश्यना सिखने शिविर में जाऊँ। मगर पारिवारिक उलझनों के चलते संभव नहीं हो सका। वह पुस्तक मैंने अपने भानजे सुनील को दी। सुनील पर भी पुस्तक का जादू जैसा प्रभाव हुआ। मैं तो नहीं जा सका शिविर में लेकिन सुनील ने तुरंत पता लगा कर जयपुर केन्द्र की राह पकड़ी। वह दस दिवसीय शिविर करके लौटा, तो बोला मामाजी आप भी जरूर जाइये। लेकिन मेरी पुण्य पारमिताएं शायद उस समय तक पकी नहीं थीं। फिर 1991 में सुनील ही अपने साथ मुझे जयपुर ले गया और जयपुर में मैंने पहला दस दिवसीय शिविर किया। इसके बाद नियमित साधना का क्रम घर पर चलता रहा। 2010 में भोपाल में दूसरा शिविर किया। गुरुजी का आग्रह रहता है कि हर साधक को कम से कम साल में एक शिविर अवश्य करना चाहिए। और नियमपूर्वक प्रतिदिन एक-एक घंटा सुबह शाम घर पर साधना करना चाहिए। लेकिन व्यस्त जीवनचर्या में यह भला संभव कहाँ हो पाता है। फिर भी प्रतिदिन एक घंटा साधना का समय तो निकाल ही लेता हूँ। विपश्यना ने जीवन की धारा ही बदल दी। गोयन्काजी का गुरु ऋण अन्य मित्रों को विपश्यना के लिए प्रेरित कर उतारने का प्रयास कर रहा हूँ।
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