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सोमवार, 18 जुलाई 2011

गुरु वंदना-3



तीसरे महत्वपूर्ण गुरु थे निष्काम कर्मी प्राकृतिक चिकित्सक सोहनलालजी। साठ साल की उम्र को छू रहा था। सेवानिवृति का सन्निकट समय। ऐसे में मन में एक निराशा का भाव आने लगता है। अनेक दाँतों ने साथ छोड़ दिया था। शरीर धीरे-धीरे कमजोर होने लगा था। बुखार के बाद कमजोरी दूर नहीं हो रही थी। वजन घटता जा रहा था। ऐसी स्थिति में मेरा भानजा सुनील फिर मेरे लिए मददगार साबित हुआ। उसने मुझे सोहनलालजी के प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र पर भर्ती करा दिया। सोहनलालजी की चिकित्सा से ही उसकी पत्नी डाली को अभूतपूर्व लाभ हुआ था। वैसे मैं सोहनलालजी को जानता था, लेकिन कभी उनके चिकित्सालय में बाडी सर्विसिंग के लिए नहीं गया था। जबकि वे कहते रहते थे कि हर व्यक्ति को साल में एक बार बाडी सर्विसिंग करानी चाहिए। जैसे आप गाड़ी की सर्विसिंग कराते हैं, आपका शरीर भी सर्विसिंग माँगता है। वे दस दिवसीय बाडी सर्विसिंग कोर्स चलाते थे। यह सुविधा अब भी मालवा मिल के निकट उनके केन्द्र पर जारी है, जिसका संचालन उनके सुपुत्र सुभाषजी और पुत्रवधू द्वारा किया जाता है। वहाँ दस दिन भर्ती रहने से अपूर्व लाभ हुआ। शरीर में बहुत कफ जमा हो गया था। उनके मिट्टी, पानी और भाँति-भाँति के स्नान के साथ प्राकृतिक आहार ने एक तरह से कायाकल्प कर दिया। दस दिन बाद घर लौटा तो शरीर काफी चुस्त-दुरुस्त हो गया। इस घटना को पाँच साल बीत गए। सोहनलालजी की सीख को शिरोधार्य कर लिया। उन्होंने जो जीवन चर्या बताई थी, उस पर चल रहा हूँ। इतने बरस में कभी कोई व्याधि ने नहीं सताया। सोहनलालजी अब इस संसार में नहीं हैं लेकिन नैसर्गिक उपचार की उनकी शिक्षा आज भी काम आ रही है। प्राकृतिक चिकित्सा थ्री डी है, यह आपको दवा, दवाखाना और दर्द से बचाती है।

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