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रविवार, 10 जुलाई 2011

कातिल हसीनाएं या पुरुष


तिहाड़ जेल पर एक रपट आई है, जो अपराधों के मामले में नारियों को पुरुषों की तुलना में अव्वल ठहराती है। आँकड़े देकर यह जताने की कोशिश की गई है कि महिलाएँ किस तरह से पुरुषों की तुलना में ज्यादा आपराधिक प्रवृति वाली होती हैं। 2011 में तिहाड़ में 2751 अपराधी आए इनमें महिलाओं का प्रतिशत 46.15 और पुरुषों का 33.47 है। फिर बताया है कि कत्ल के जुर्म में 6.73 प्रतिशत महिलाएं जेल में आईं जबकि पुरुषों की संख्या 5.93 फीसद ही है। अपहरण और अगवा करने के मामलों में महिलाओं का प्रतिशत 10.59 है तो पुरुषों का केवल 3.66 फीसद ही है। दहेज हत्या के मामलों में महिला कैदियों की संख्या 8.66 फीसद है तो पुरुषों की सिर्फ 2.64 फीसद ही है। समाचार की शुरूआत कुछ इस तरह से की गई है कि स्त्रियाँ केवल अदा से ही नहीं मारती, हकीकत में भी हत्यारिन होती हैं। जाहिर है यह रपट किसी पुरुषवादी ने ही पुरुषों की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए बनाई होगी। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को प्रताड़ित, शोषित और बदनाम करने की साजिशें प्राचीन काल से चली आ रही हैं। आखिर स्त्री जो ममतामयी माता है, ऐसे कृत्य करने को मजबूर क्यों होती है। पुरुष ही ऐसे हालात निर्मित कर देते हैं कि नारी को अपराध करने पड़ते हैं। वरना नारी कभी आगे रह कर ऐसे कार्य नहीं कर सकती। शातिर पुरुष अपराध करने के बाद भी अपनी चालाकियों के सहारे बच निकलते हैं और भोली-भाली नारी पकड़ी जाती है। शायद इसी वजह से जेल में उनकी तादाद ज्यादा दिखाई देती है। महिलाओं की इस स्थिति पर साहिर लुधियानवी ने फिल्म साधना में बड़ा अच्छा गीत लिखा है-
औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाजार दिया।
जब जी चाहा मचला-कुचला, जब जी चाहा दुत्कार दिया।

1 टिप्पणी:

  1. हाँ इस बात कि संभावना ज्यादा ही दिखाई देती है .. पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों को ही जवाबदारी लेना होगी .. ! साहिर साहब ने समाज के इस पहलु पर बड़ी बेबाकी से लिखा है ...

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