सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामय। अगर हम एक आदर्श जीवनशैली अपना लें, तो रोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। मैंने अपने कुछ अनुभूत प्रयोग यहां पेश करने की कोशिश की है। जिसे अपना कर आप भी स्वयं को चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं। सुझावों का सदैव स्वागत है, कोई त्रुटि हो तो उसकी तरफ भी ध्यान दिलाइए। ईमेल-suresh.tamrakar01@gmail.com
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गुरुवार, 7 जुलाई 2011
मौत के मूल्य
जाते सभी उसी घाट, सबके अलग-अगल हैं ठाठ।
मौत मौत है, लेकिन हमने उसे अलग-अलग नाम और मूल्य दे दिए हैं। गरीब मरता है, अमीर और सेलेब्रिटी का निधन, अवसान या देहावसान होता है। संतों का स्वर्गवास या कैलासवास होता है। कोई मुफ्त में मर जाता है क्योंकि गांठ में दवा-दारू के लिए फूटी कौड़ी नहीं होती। और कोई पंचतारा अस्पतालों में लाखों रुपए खर्च करने के बाद मरता है। सभी जलाए या दफनाए जाते हैं, मगर प्रक्रियाएं जुदा-जुदा हैं। कोई चंदन की चिता में जलता है, तो किसी को चार लकड़ियाँ नसीब नहीं होती। किसी पर शालों की बरसात हो जाती है, तो किसी को कफन भी नहीं मिलता। किसी को चार कँधे भी नहीं मिलते तो किसी को उठाने वालों की कतार लगी रहती है। श्रद्धांजलि सभा में उसका जमकर गुणगान होता है। किसी साधारण वाहन में मरे तो कुछ नहीं, रेल या हवाई जहाज में मरे तो मुआवजा अलग-अलग मिलता है। मुआवजे में भी राजनीति चलती है। रेल और बारात की बस की टक्कर में मृत लोगों के आश्रितों को माया सरकार ने एक-एक लाख रुपए देने की घोषणा की तो मनमोहन सरकार ने नहले पर देहला मारते हुए तुरंत दो-दो लाख घोषित कर दिए। कारण उत्तरप्रदेश में चुनाव होने हैं। वरना अन्य राज्यों में भी दुर्घटनाएं हो रही हैं लोग मर रहे हैं लेकिन मनजी की सरकार सो रही है।
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पैदा होने से मरने तक सबका असमानता से पाला पड़ता ही है, असमानता एक सच्चाई है और समानता एक स्वप्न ..... बिना स्वयं को परिष्कृत किये समानता कि आशा करना एक छलावा है ....!!!!
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