सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामय। अगर हम एक आदर्श जीवनशैली अपना लें, तो रोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। मैंने अपने कुछ अनुभूत प्रयोग यहां पेश करने की कोशिश की है। जिसे अपना कर आप भी स्वयं को चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं। सुझावों का सदैव स्वागत है, कोई त्रुटि हो तो उसकी तरफ भी ध्यान दिलाइए। ईमेल-suresh.tamrakar01@gmail.com
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शुक्रवार, 1 जुलाई 2011
पहले पढ़ें फिर सुनें
अक्सर हम गीत संगीत के साथ सुन जाते हैं और उनके बोलों पर ठीक से ध्यान नहीं जा पाता। ऐसा भी होता है कि प्रवाह में उन्हें ठीक से पकड़ नहीं पाते। पुराने जमाने में फिल्म देखने पिताजी के साथ जाते थे, तो टाकिज के बाहर और अंदर भी चालू खेल के गानों की किताब एक आना, एक आना की आवाज लगाते बच्चे उस फिल्म के गीतों की पुस्तिका बेचा करते थे। पिताजी को गीत संगीत का शौक था। वे ये पुस्तिकाएं खरीद लिया करते और फिर झूले पर बैठ कर हमें गाने गाकर सुनाते। देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान। दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अँखियाँ प्यासी रे वगैरह-वगैरह। इंदौर के सरदार सोहनसिंह बुक सेलर ये पुस्तिकाएं छापते थे। अब यह सुविधा समाप्त हो गई। अभी बहुत दिन बाद मैंने फिल्म दो दूनी चार का यह गीत यू ट्यूब पर देखा और सुना तो बोलों पर ध्यान गया और पूरा गीत मैंने दो बार सुन कर लिख डाला। गुलजार साहब की शब्द रचना क्या गजब की होती हैं। आप भी पढ़ कर आनंद लीजिए और फिर हो सके तो गीत सुनिए। निश्चय ही मजा अधिक आएगा।
हवाओं पे लिख दो, हवाओं के नाम
हम अनजान परदेसियों का सलाम
हवाओं पे लिख दो हवाओं के नाम
ये किस के लिए है बता किसके नाम
ऐ पंछी तेरा ये सुरीला सलाम
शाख पर जब धूप आई, शाख छूने के लिए
छांव छम से नीचे कूदी, हँस के बोली आइए
यहाँ सुबह से खेला करती है शाम
हवाओं पे लिख दो...........
चुलबुला ये पानी अपनी राह बहना भूल कर
लेटेलेटे आईना चमका रहा है, फूल पर
ये भोले से चेहरे हैं मासूम नाम
हवाओं पे लिख दो..........
दो दूनी चार (1968)/ किशोर/ हेमंत/ गुलजार
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सुरेश दा,
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा...आज के फिल्मी संगीत मे संगीत का ज़ोर ज्यादा और गीत का कम होता जा रहा है... कही न कही हम पढने की आदत से दूर होते जा रहे है... किसी से अगर आज के पाँच संगीतकारो के नाम पूंछों कोई भी बता देगा...मगर गीतकार नहीं बता पाएगा पहले ऐसा नहीं था...