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शनिवार, 25 जून 2011

ये जघन्य हत्यारे


सड़क चौड़ी हुई तो आसपास के सब दरख्तों को लील गई। कितना खूबसूरत मार्ग था, अब कैसा वीरान लगता है। कहाँ गई वह इमली जिसे देख-देख कर राहगीरों के मुँह में पानी आया करता था। वे जामुन के ऊँचे-ऊँचे दरख्त जो बारिश के आने से पहले काले-काले जामुन की वर्षा करते थे। बच्चे क्या बड़े भी बीन-बीन कर खाने से स्वयं को रोक नहीं पाते थे। गर्मियों में वो गुलमोहर सूर्ख लाल हो उठते थे। और अमतास पर सुनहरे झूमके लटकते थे। जब हवा चलती तो उस पीपल के पत्ते कैसे मुस्कुराते हुए नृत्य करते थे। सब के सब इस निगोड़ी सड़क के गर्भ में समा गए। फिर किसी को अक्ल आई तो सड़क के दोनों किनारो पर नए पौधे रोप दिए गए। उन्हें पाल पोस कर बड़ा किया, बड़े होकर जब वे दरख्त बन इतराने लगे तो जालिम बिजली वालों से उनकी यह खुशी बर्दाश्त नहीं हुई। मानसून पूर्व मेंटेनेंस के नाम पर एक दिन उसके जल्लाद आए और जघन्य हत्यारों की तरह किसी की गरदन तो किसी के हाथ काट कर चल दिए। अब जब उस सड़क से गुजरता हूँ तो अंगभंग वे पेड़ मानो जार-जार रोते हुए कहते हैं-हमें इसी तरह काटना था तो लगाया ही क्यों।

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