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रविवार, 19 जून 2011

बाजारवाद ने छीने बेटी-बेटे


बाजारवाद ने माता-पिता से उनके बेटी-बेटों को छीन लिया। पाल-पोस कर बढ़ा किया, खूब पढ़ा-लिखा दिया और बाजार ले उड़ा उनको। घर में बूढ़े माता-पिता बेसहारा हो गए। बेटा अमेरिका में डालर कूट रहा है। वहाँ की चकाचौंध उसे लुभा रही है। फिर भले ही अपनत्व और स्नेह न मिलता हो। डालर तो मिल रहे हैं। माता-पिता को भी उनमें से कुछ भेज देता है। कभी टिकट भेज कर सैर करा देता है। लेकिन बुढ़ापा बेसहारा ही कट रहा है। माता-पिता ने सोचा था कि बड़ा होकर बेटा उनकी लाठी बनेगा। लेकिन उन्हें दूसरों की बैसाखियों पर ही जीवन बसर करना होता है। ऐसे अनेक वृद्ध हैं, जो अपने बेटे खो चुके हैं। कभी फोन पर बात हो जाती है या नेट पर चेटिंग करके संतोष कर लिया जाता है। बाजारवाद के कारण परिवार तेजी से टूट रहे हैं। ऐसे माता-पिता मन में तो व्यथित रहते हैं, लेकिन उपर से प्रदर्शित करते हैं-बेटा अमेरिका में है। कार और बंगला ले लिया है। हमें भी डालर भेजता है। पिछली बार आया था, तो कार खरीद कर दे गया। जब इच्छा होती है, तो बाजार के मेले की सैर कर लेते हैं। बाकी दिन-रात अकेले के अकेले।

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