सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामय। अगर हम एक आदर्श जीवनशैली अपना लें, तो रोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। मैंने अपने कुछ अनुभूत प्रयोग यहां पेश करने की कोशिश की है। जिसे अपना कर आप भी स्वयं को चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं। सुझावों का सदैव स्वागत है, कोई त्रुटि हो तो उसकी तरफ भी ध्यान दिलाइए। ईमेल-suresh.tamrakar01@gmail.com
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शनिवार, 2 अप्रैल 2011
रोग निवारे, गेहूँ के जवारे wheatgrass
सोमवार को वर्ष प्रतिपदा अर्थात गुड़ी पड़वा है। इस दिन से नया हिंदू नववर्ष आरंभ होता है। चैत्र नवरात्रि भी इसी दिन से आरंभ होती है। चैत्र नवरात्रि की एक विशेषता है-गेहूँ के जवारे (wheat-grass)। माता पूजन के साथ गेहूँ के जवारों की भी पूजा की जाती है। नौ दिन तक पूजन के बाद इन्हें नदी या जलाशय में विसर्जित करने की परंपरा है। विसर्जन से पूर्व जवारों को गले लगाया जाता है। भूजरिया त्यौहार पर भी गेहूँ के जवारे बोने और जुलूस के साथ उनके विसर्जन का रिवाज है। हिन्दुस्तान में सेहत से जुड़ी वनस्पतियों को धर्म के साथ जोड़ दिया गया, ताकि लोग उनके महत्व को समझ सकें। गेहूँ के जवारों के रस को ग्रीनब्लड कहा जाता है। यह भी कहते हैं कि अगर नियमित इस रस का सेवन किया जाए तो कैंसर की गाँठे तक गल जाती हैं। अनेक जीर्ण रोगों को गेहूँ के जवारे ठीक कर देते हैं।
पश्चिम में इनकी उपयोगिता की खोज 1930 में हुई। कृषि रसायनशास्त्री चार्ल्स एफ.शेनबेल के फार्म पर मुर्गियों को कोई जानलेवा बीमारी हो गई। सारे उपचार किए मगर सब व्यर्थ गए। शेनबेल ने व्हीट ग्रास को आजमाया। बीमार मुर्गियों को आहार में व्हीटग्रास अर्थात गेहूँ के जवारे दिए गए। आश्चर्य मुर्गियाँ उससे ठीक होने लगी और अंडे भी ज्यादा देने लगी। स्वस्थ मुर्गियों पर भी प्रयोग किया तो वे भी अंडे ज्यादा देने लगी। जवारों का बंडल मछलीघर याने एक्वेरियम में डाल दिया जाए तो उस पानी को ये साफ कर देते हैं। मछलियों की सेहत भी सुधर जाती है। फिर दो अमेरिकी कंपनियों ने इन पर काफी रिसर्च किया। मनुष्यों पर प्रयोग हुए। गेहूँ के जवारों का रस, पावडर व टेबलेट बाजार में आ गए।
-गेहूँ के जवारे का रस प्रतिदिन दो से चार औंस(अर्थात 60 से 120 मिग्रा) लिया जा सकता है।
-आवश्यकतानुसार इसे दिन में तीन बार भी ले सकते हैं। जब भी लें खाली पेट लें। उसके बाद आधे घंटे तक कुछ खाएं-पिये नहीं। आधे घंटे में यह रक्त में मिल जाता है।
-जवारे उगाने के लिए पहले रात को एक मुठ्ठी गेहूँ पानी में भिगो दें। सुबह उसे मिट्टी में बो दें।
-बोने के लिए सात छोटे गमले या बाँस की टोकनियाँ लीजिए। रोज एक-एक गमले में गेहूँ बोते जाइए। इन्हें छाया में ही रखना चाहिए।
-सातवे दिन पहले गमले के जवारे चार से पाँच इंच बड़े हो जाएंगे। ये रसपान के लिए तैयार हैं।
-इनकी जड़ें काट कर अलग कर दें और पत्तियों को सील पर या हेंडग्राइंडर या खरल में पीस कर चटनी जैसा बना लें। अब इसमें थोड़ा पानी मिला कर बारीक कपड़े से छान लें।
-यह रस पीने के लिए तैयार है। इसे ताजा ही पीना चाहिए।
-मिक्सर में रस निकालने का वैज्ञानिक इंकार करते हैं। उनका कहना है कि मिक्सर में यह इतनी तेजी से घूमते हैं कि आक्सीडेशन से इनका क्लोरोफिल नष्ट हो जाता है।
जवारों की पालक के साथ तुलना
----------- जवारे----------पालक
प्रोटीन----- 860 मिग्रा/ 810 मिग्रा
बीटा केरोटिन--120 आययू/ 2658 आययू
विटामिन ई---850 एमसीजी/ 580 एमसीजी
विटामिन सी--1 मिग्रा / 8 मिग्रा
विटामिनबी12-0.3 एमसीजी / 0 एमसीजी
फासफोरस---21 मिग्रा / 14 मिग्रा
मेगनेशियम--8 मिग्रा / 22 मिग्रा
केल्शियम---7.2 मिग्रा / 28 मिग्रा
लोहा----- 0.66 मिग्रा / 0.77 मिग्रा
पोटेशियम---42 मिग्रा/ 158 मिग्रा
अगर आप जवारे बोने की झंझट से बचना चाहें तो पालक का रस भी निकाल कर पी सकते हैं। कुछ मामलों में तो पालक इनसे श्रेष्ठ है। जवारों को पानी में विसर्जन की परंपरा शायद इसीलिए चली होगी कि ये पानी को शुद्ध करते हैं और जलचरों की सेहत को भी लाभ पहुँचाते हैं। नवरात्रि में नौ दिनों तक घर के अंदर का ये पर्यावरण ठीक रखते होंगे। विसर्जन के पूर्व इन्हें गले लगाने में शायद स्पर्श से सेहत के लाभ का कारक जुड़ा होगा।
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baddhiya jaankari..
जवाब देंहटाएंदिन मैं सूरज गायब हो सकता है
जवाब देंहटाएंरोशनी नही
दिल टू सटकता है
दोस्ती नही
आप टिप्पणी करना भूल सकते हो
हम नही
हम से टॉस कोई भी जीत सकता है
पर मैच नही
चक दे इंडिया हम ही जीत गए
भारत के विश्व चैम्पियन बनने पर आप सबको ढेरों बधाइयाँ और आपको एवं आपके परिवार को हिंदी नया साल(नवसंवत्सर२०६८ )की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!
आपका स्वागत है
"गौ ह्त्या के चंद कारण और हमारे जीवन में भूमिका!"
और
121 करोड़ हिंदुस्तानियों का सपना पूरा हो गया
आपके सुझाव और संदेश जरुर दे!
http://mskhilery.blogspot.com/2020/03/blog-post.html
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