सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामय। अगर हम एक आदर्श जीवनशैली अपना लें, तो रोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। मैंने अपने कुछ अनुभूत प्रयोग यहां पेश करने की कोशिश की है। जिसे अपना कर आप भी स्वयं को चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं। सुझावों का सदैव स्वागत है, कोई त्रुटि हो तो उसकी तरफ भी ध्यान दिलाइए। ईमेल-suresh.tamrakar01@gmail.com
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मंगलवार, 19 अप्रैल 2011
बच्चे और ध्यान
बच्चों का ग्रीष्म अवकाश शुरू हो चुका है। उनके पास अब कोई काम नहीं है। घरों में बोर होते रहते हैं। कई समर क्लासेस शुरू हो गई हैं। कोई तैराकी, कोई घुड़सवारी, कोई जुडो कराटे तो कोई बेडमिंटन सीख रहे हैं। ये सब तो अपनी जगह ठीक हैं। लेकिन बच्चों को अगर इनके साथ ध्यान का अभ्यास भी कराया जाए तो उनके अध्य़यन में यह मददगार हो सकता है। इससे एकाग्रता बढ़ती है और स्मरणशक्ति का विकास होता है। बाल मन चूँकि चंचल होता है, इसलिए उन्हें एकाग्रता की बहुत जरूरत होती है। पिछले दिनों इंदौर के विपश्यना ध्यान केन्द्र धम्ममालवा पर बच्चों के लिए आनापान ध्यान शिविर हुआ था, जिसमें बच्चों ने बड़े उत्साह से भाग लिया। शिविर समाप्ति पर उनके अनुभव भी अच्छे रहे। समय-समय पर ऐसे शिविर होते रहते हैं। अखबारों में सूचना भी छपती है। अब जब भी अगला शिविर हो तो अपने बच्चों को अवश्य भेजिए।
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