सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामय। अगर हम एक आदर्श जीवनशैली अपना लें, तो रोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। मैंने अपने कुछ अनुभूत प्रयोग यहां पेश करने की कोशिश की है। जिसे अपना कर आप भी स्वयं को चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं। सुझावों का सदैव स्वागत है, कोई त्रुटि हो तो उसकी तरफ भी ध्यान दिलाइए। ईमेल-suresh.tamrakar01@gmail.com
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शनिवार, 19 फ़रवरी 2011
जागो हो जोशीजी
वे जोशीजी चली गया और अपणा जोशीजी वांता करता ज रइग्या। वणा दन लायब्रेरी वाळा जोशीजी तीन चढ़ाव नीचे उतरनी आया। कइन लग्या ताम्रकरजी हूँ भी विपश्यना शिविर मं जइरियो। रिटायर होणा से पेले मने सोच्यो कि चलो बची खुची छुट्टी को लाभ लइलूँ। कईं कईं करनूं पड़े, मके एक बार तम फिर बतई दो। मने कयो अरे वा जोशीजी या तो बड़ी अच्छी बात हे कि तम्हारा मन में प्रेरणा जागी। हमारी मेहनत अकारथ नी गई। हम तो समझी रिया था कि इतनी बड़ी नईदुनिया में एक बंदो भी नी मिल्यो। एक हमारा देवराज दिनेशजी हे। दो-तीन साल से जावां वास्ते बातां करीरिया। दो-चार बार म्हारा से फोन नम्बर और नाम पता सब लइग्या। जाणो तो वे भी चावे, पण उके बापड़ा के घणों काम रेवे, टेम नी मळे। बड़ी अच्छी बात कि तमके टेम मळीग्यो। या पोथी लई जाओ, अणी में सब लिख्यो हे। कईं करनूं और कईं नी करनूं। चलो एक न एक दन या जोशीजी को भी टेम मळेगो। जोश जागेगो।
मंगल हो, कल्याण हो, भला हो।
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