सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामय। अगर हम एक आदर्श जीवनशैली अपना लें, तो रोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। मैंने अपने कुछ अनुभूत प्रयोग यहां पेश करने की कोशिश की है। जिसे अपना कर आप भी स्वयं को चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं। सुझावों का सदैव स्वागत है, कोई त्रुटि हो तो उसकी तरफ भी ध्यान दिलाइए। ईमेल-suresh.tamrakar01@gmail.com
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शनिवार, 19 फ़रवरी 2011
आस्था और दवा
वैज्ञानिक अध्ययन से यह साबित हुआ है कि अगर व्यक्ति का सोच नकारात्मक हो तो दवा बेअसर हो जाती है। बीबीसी ने साइंस ट्रांजिशन मेडिसीन के हवाले से यह जानकारी दी है। वैज्ञानिकों ने कुछ मरीजों को बता कर और कुछ को बिना बताए दर्द निवारक दवाएं दी। कुछ मरीजों को प्लेसिबो (अर्थात खाली गोलियाँ) दी गईं। जिन मरीजों का सोच नकारात्मक था उन पर दर्द निवारक दवाएं भी बेअसर रहीं और सकारात्मक सोच वालों को प्लेसिबो से भी लाभ हो गया।
श्रद्धा और विश्वास की बातें भारतीय संस्कृति और आयुर्वेद में काफी समय से कहीं जाती रही हैं। आधुनिक विज्ञान इस मान्यता को अंधविश्वास कह कर ठुकराता रहा है। अब वही विज्ञान इसे प्रयोग और अध्ययनों से साबित कर रहा है।
मेरी माँ का किस्सा है, मैं उन्हें लक्षणानुसार होमियो दवा देता था। लेकिन उन्हें मुझ पर उतना यकीन नहीं था, जितना मेरे गुरुदेव डा.वासुदेव शर्मा पर था। वे कहती-तुझे कुछ नहीं आता। जा शर्माजी से दवा लाकर दे। शर्माजी को जब मैं बताता कि मैंने यह दवा दी थी। वह कहते आपने सही दवा दी। लेकिन बात आस्था और विश्वास की है। शर्माजी के यहाँ की एक पुड़िया से ही उनका रोग अक्सर दूर हो जाता था।
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ये तो बिल्कुल सही बात है...
जवाब देंहटाएंहर बात जो सकारात्मकता से ली जाती है ...वह गजब ढाती है /
जवाब देंहटाएंनकारात्मकता से बनती बात बिघढ़ जाती है //
आपने उदाहरणों से यह बात बहुत उम्दा तरीके से सामने रखी है // सोंच ठीक रहे ऐसी प्रेरणा मिलती है //