सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामय। अगर हम एक आदर्श जीवनशैली अपना लें, तो रोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। मैंने अपने कुछ अनुभूत प्रयोग यहां पेश करने की कोशिश की है। जिसे अपना कर आप भी स्वयं को चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं। सुझावों का सदैव स्वागत है, कोई त्रुटि हो तो उसकी तरफ भी ध्यान दिलाइए। ईमेल-suresh.tamrakar01@gmail.com
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शनिवार, 26 फ़रवरी 2011
सेहत का अ आ इ ई
सेहत का अ आ इ ई। अ से तात्पर्य अलसी, आ से आँवला, इ से इमली और ई से ईख या गन्ना। अगर हम अपने दैनिक जीवन में इस अ आ इ ई को अपना लें तो समझिए जीवन की नैया बिना बीमारी के हिचकोले खाए आपको भव सागर से पार लगा देगी। इस ब्लाग में अलसी, आँवला और इमली पर पहले चर्चा हो चुकी है। आज हम ईख या गन्ने के गुणों का दर्शन करते हैं। गन्ने को अंग्रेजी में शुगरकेन(sugercane)कहते हैं। गन्ना मधुरता और समृद्धि का प्रतीक है। अगर मन, वचन और कर्म में मधुरता हो तो लक्ष्मी उसका वरण करती है। शायद इसके इन गुणों के कारण ही लक्ष्मीपूजन के समय गन्ने की पूजा करने का रिवाज चला हो। खैर धार्मिक मान्यता चाहे जो हो हम तो इसके स्वास्थ्यप्रद गुणों पर आते हैं।
गन्ने का रस मधुर, पाचक और शक्तिवर्धक है। इसे ताजा निकाल कर पीना चाहिए। अधिक देर रखने से यह खराब होने लगता है। गन्ने के रस में थोड़ा नींबू, अदरक और काला नमक मिला लिया जाए तो स्वाद और सेहत दोनों दृष्टि से इसके गुणों का संवर्धन हो जाता है।
यह थकावट दूर करता है, रक्ताल्पता मिटाता है, पाचनशक्ति वर्धक है, अम्लपित्त या एसिडिटी दूर करता है, कब्जनाशक है, पथरी नष्ट करता है, शरीर पुष्ट करता है। गन्ने के टुकड़े चूसने से दाँत मजबूत होते हैं और दाँतों में जमा मैल अर्थात टार्ट स्वतः निकल जाती है। गन्ना अगर दाँतों से छिल कर खा सकें तो क्या कहने। लेकिन वैसे दाँत चाहिए। मंद ज्वर में एक गिलास गन्ने का रस रोज लेना लाभप्रद है। कुकर खाँसी में कच्ची मूली का रस 50 मिलीग्राम एक गिलास गन्ने के रस के साथ मिला कर लेने से लाभ होता है। एक गिलास गन्ने का रस नित्य पीने से सूखी खाँसी चली जाती है। मासिक धर्म के दिनों में पाँच चम्मच गन्ने का सिरका सोने से पूर्व लेने से मासिक नियमित और खुल कर आता है। गन्ना चूसते रहने से पथरी गल कर निकल जाती है। पीलिया रोग में भी गन्ने का रस मफीद होता है। गन्ने के रस से हिचकी में भी आराम मिलता है। खाने के बाद एक गिलास गन्ने का रस पीने से रक्त साफ होता है।
पुनश्चः कुदरत ने हमें अमृत के समान रसीला गन्ना दिया और हमने उस गन्ने से शक्कर बना कर उसका कबाड़ा कर दिया। यह सफेद जहर ही मानव के लिए कहर बनता जा रहा है।
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गन्ने की अगर दुकाने लगे , जहाँ गन्ने की गंडेरियाँ मिले..तो खूब चल निकले पुराना चलन / निश्चित ही इसके चाहने वालों की कमी नहीं ..आज भी बड़ी सब्जी मंडी में ये मिलती है .बस एक दुकानदार इन्हें रखता है ..जब जब भी मंडी जाना होता है ले आता हूँ / बस गन्ने का मिलना सुलभ नहीं है और छिलने -विलने का समय मिल भी जाय तो आलस आड़े आ जाती है. रोचक जानकारी आपने दी है..और मैं १०० % सहमत हूँ /
जवाब देंहटाएंये नया ककहरा पढ़वा दिया...
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