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शनिवार, 15 जनवरी 2011

कुदरत का उग्रवाद


इस बार ठंड खूब पड़ रही है। पाला पड़ने से फसलें जल गई। मध्यप्रदेश में एक अनुमान के अनुसार पाँच हजार करोड़ रुपए की फसलें क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। अपनी मेहनत की कमाई को अपनी आँखों के सामने बर्बाद होते देख किसान व्यथित हैं। कुछ तो आत्मघात कर बैठे हैं। प्रकृति के साथ मानव की खिलवाड़ का नतीजा है मौसम का उग्रवाद। प्रकृति कुपित होकर अपना रौद्र रूप दिखा रही है। कहीं भीषण बाढ़ तो कहीं भयानक हिमपात हो रहा है। लोगों के आशियाने नष्ट हो रहे हैं। लोग मर रहे हैं। लेकिन कुदरत के नियमों का पालन करो तो कुदरत उन्हें माफ भी कर देती है। जैविक पद्धति की फसलों पर नहीं हुआ पाले का असर। जी हाँ यह जानकारी कृषि महकमें के पूर्व संचालक और मेपकास्ट के रिसर्च फेलो डा.जीएस कौशल ने दी है। उनका कहना है कि अगर आपको प्रकृति के झंझावातों से बचना है तो जैविक खेती को अपनाना होगा। वरना इसी तरह फसलें बर्बाद होती रहेंगी और किसान आत्महत्या करने को मजबूर होते रहेंगे।
पूर्व कृषि संचालक ने बताया कि छतरपुर के गाँधी प्रतिष्ठान ने १५० एकड़ में गेहूँ, चना, तूवर और आलू की फसलें लगाई हैं। जब इस क्षेत्र की अन्य फसलें पाले से झुलस गई तब इन फसलों को पाला नहीं लगा। इसी तरह ओबेदुल्लागंज में मेपकास्ट के फार्म पर दो एकड़ में चना और इंदौर के आनंद सिहं ठाकुर के दस एकड़ के खेत में आलू, सब्जी और गेहूँ-चना की फसल पर भी पाले का असर नहीं पड़ा। डा.कौशल के अनुसार जैविक खेती की वजह से फसल में रहने वाली नमीं और भूमि को मिलने वाले सूक्ष्म जीवाणु फसलों को पाले के असर से बचाते हैं।
डा.कौशल की इस खबर को मीडिया ने नजरअंदाज कर दिया। और कृषिमंत्री की बात को संदर्भ से काट कर उछाला। कृषिमंत्री ने भी लगभग यही बात कही थी कि फसलों की बर्बादी और किसानों की आत्महत्या हमारे कर्मों का फल है। क्या गलत कहा था उन्होंने? लेकिन नकारात्मक सोच वाला मिडिया ऐसी ही खबरों को उछाल कर समाज में असंतोष फैलाता है। जैविक खेती के महत्व को नजरअंदाज कर जाता है।

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