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बुधवार, 12 जनवरी 2011

अलसी महिमा का प्रोमो


अलसी के स्टार प्रचारक डा.ओपी वर्मा ने अलसी को जन-जन तक पहुँचाने के लिए एक और उम्दा काम कर डाला। स्वयं के खर्च से अलसी महिमा नामक एक पुस्तिका प्रकाशित करवाई है। इस पुस्तिका में अलसी की महिमा के साथ डा.योहाना बुडविग के कैंसर रोधी आहार-विहार और यूडो इमरस्न के तेल, तिलहन और वसा से संबंधित अनुसंधान को भी हिंदी में पेश किया है। १५ जनवरी को आपका मध्यप्रदेश की राजधानी में अलसी पर व्याख्यान है, इस अवसर पर यह पुस्तिका भी जारी की जाएगी। पुस्तिका की पाँच हजार प्रतियाँ निशुल्क वितरित करने की उनकी योजना है। जैसे भगीरथ ने तपस्या कर मानव कल्याण के लिए ध्ररती पर गंगा को बुलाया था, उसी तरह डा.वर्मा भारत की प्राचीन अलसी संपदा को समाज में पुनः गरिमा दिलाने के कार्य में जुटे हैं। आज के स्वार्थ प्रधान युग में ऐसे परमार्थी चिकित्सक बिरले ही मिलते हैं। वे चाहते हैं कि अलसी अपना कर जैसे वे स्वस्थ हुए वैसे सभी सुखी हों, स्वस्थ हों, निरोगी हों, निरामय हों। पुस्तक में अलसी सेवन करने वालों के संक्षिप्त अनुभव और अलसी सेवन के तरीके के अलावा अलसी के व्यंजनों का भी वर्णन है।

1 टिप्पणी:

  1. आदरणीय ताम्रकर साहब,
    आपको आपकी और आप ही के द्वारा संपादित की गई अलसी महिमा की एक और सफलता के बारे में बतलाना चाहता हूँ और पुनः बधाई भी देता हूँ। यह पुस्तक पूरे भारत वर्ष में धूम मचा रही है और सफलता की नई इबारत लिख रही है। पिछले दिनों उदयुर के आर.एन.टी. मेडीकल कॉलेज के दो द्वसीय स्वर्णोत्सव समारोह में लगभग 2000 चिकित्सकों ने शिरकत की थी। इस अवसर पर मैंने सभी को आपकी अलसी महिमा की प्रति भैंट की थी। जगह जगह लोग इसकी फोटो कॉपियां भी करवा कर बांट रहे हैं। आपके इन्दौर के प्राकृतिक चिकित्सक डॉ. जगदीश जोशी ने इस महान चिंतक और आदरणीय प्रोफेसर ... को इस पुस्तक की प्रति भेट की थी। शायद आप उन्हें जानते ही होंगे। पिछले सप्ताह कोटा शहर में एक बड़े समारोह में बी.जे.पी. के नेता श्री गोविंदाचार्य जी ने इन प्रोफेसर साहब का स्वागत कर आशीर्वाद प्राप्त किया था। इस समारोह के बाद प्रोफेसर साहब इस पुस्तक की फोटो कॉपी लेकर मुझसे मिलने आये और बार बार कह रहे थे कि वे मुझसे मिलने और दर्शन करने आये हैं तथा बार बार हेट्स ऑफ टू यू कह रहे थे। वे मुझसे बहुत बड़े और आदरणीय व्यक्ति हैं, उनके मुंह से ऐसे शब्द सुनना मुझे बहुत असहज लग रहा था। मैं स्तब्ध था और उनके चरण स्पर्श करते हुए उन्हे बार बार यही कह रहा था कि बाबूजी आप तो मुझे दर्शन देने आये हैं। मैंने उन्हे अलसी चेतना की मूल प्रति, ओम-वाणी और अन्य सामग्री भैंट की। उसी दिन हमने पहली बार कंचन हिम बनाया था, जिसे मैंने उन्हें खिलाया। उन्हें कंचन हिम बहुत ही मजे लेकर खाया और उसकी भूरि भूरि प्रशंसा की। उनके साथ बिताया हुआ यह समय मैं कभी नहीं भूल पाऊँगा।
    मेरे प्रिय अग्रज भ्राता श्रेष्ठ आपकी अलसी महिमा की ऐसी महिमा के लिए आपको एक बार पुनः बधाई देता हूँ। मेरे खयाल से अब हमें इसके नये संस्करण पर काम करना चाहिये। इस विषय पर मैं आपसे फोन पर बात करता हूँ।
    डॉ. ओम वर्मा

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