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मंगलवार, 11 जनवरी 2011

तेल और तड़का बिन माँगे रोग भड़का


आधुनिक समाज में हम हर चीज रिफाइंड करके खाते हैं। इस चक्कर में खाद्य पदार्थों के प्राकृतिक तत्व व गुण नष्ट हो जाते हैं। मसलन खाद्य तेलों को ही लीजिए। रिफाइंड करने के लिए इन्हें २०० से ५०० डिग्री सेल्सियस तापमान पर गर्म किया जाता है। इससे इनका ओमेगा-३ वसा अम्ल जिसे अल्फा लिनोलेनिक एसिड के वैज्ञानिक नाम से भी जाना जाता है, पूरी तरह नष्ट हो जाता है।
फिर तेल को रंगहीन व गंधहीन बनाने के लिए घातक रसायन जैसे कास्टिक सोड़ा, फास्फोरिक एसिड, ब्लीचिंग क्लेज का प्रयोग किया जाता है। सामान्य तरीके से तिलहन से तेल निकालने पर उनमें ७ प्रतिशत अंश रह जाता है। इस सात प्रतिशत को भी निचोड़ने के उद्देश्य से तेल में घातक पेट्रोलियम पदार्थ साल्वेंट हेक्जेन मिलाया जाता है। पूरा तेल निकलने पर तेल को उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है। इस तरह बेदम तेल खूबसूरत पैकिंग में उपभोक्ताओं को लुभावने सपनों के विज्ञापनों के साथ बेच दिया जाता है।
पुराने समय में कच्ची घानी से तेल निकाल कर उसका उपयोग खाने के लिए किया जाता था। जो खली निकलती थी, उसमें सात प्रतिशत तेल का बचा अंश हमारे दुधारु पशुओं का आहार बनता था। अब तो न मानव को वह शुद्ध तेल नसीब है न पशुओं को तेल वाली खली। प्रसिद्ध वैज्ञानिक यूडो इरेस्मस ने एक पुस्तक लिखी है-Fats that Heals fats that Kills. इस पुस्तक की दो लाख से ज्यादा प्रतियाँ बिक चुकी हैं। इसमें ऐसे तेलों की ही पोल खोली है। विस्तार से चाहें तो वेबसाइट WWW.udoerasmus.com तथा http;/flaxindia.blogspot.com पर जा सकते हैं।
अब जरा बाजार में मिलने वाले हमारे नमकीनों के बारे में विचार कीजिए, जिन्हें चटखारे लेकर आप मजे से रोज खाते हैं। नमकीन बनाने वाले इन रिफाइंड तेलों का ही तो इस्तेमाल करते हैं। और कढ़ाई में बार-बार उस तेल को उबालते रहते हैं। ऐसे विषाक्त और निर्जीव तेल में तले पदार्थ भला मनुष्य को क्या देते होंगे? सिवा क्षणिक स्वाद के बाकी सब रोगों का घर है।
प्रसिद्ध चिकित्सक डा.ओपी वर्मा जो अलसी के भारत में स्टार प्रचारक हैं ने लिखा है कि गृहणियों को तेल में तड़का लगाना और तलना बंद ही कर देना चाहिए। तेल, तलना और तड़का अर्थात बिन माँगे रोग भड़का।

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