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मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

मित भुक, हित भुक और ऋत भुक


जर्मनी वालों को मिताहार का महत्व अब समझ में आया। देर से ही सही चलो आ तो गया। जर्मनी में हाल ही शोध से पता चला है कि जो लोग मिताहारी होते हैं उनकी स्मरण शक्ति अच्छी होती है। ठूस-ठूस कर खाने वालों में भूलने की आदत ज्यादा होती है। हमारे यहाँ तो आयुर्वेद में यह बात बरसों पहले कही जा चुकी है। इसकी एक दिलचस्प कथा है। चरक ऋषि चरक संहिता की रचना के बाद एक बार पृथ्वी पर यह जानने निकले कि उनकी बताई बातों का कितने लोग पालन करते हैं? एक स्थान पर एक वैद्यजी कुछ जड़ी-बूटी पिसते दिखाई दिए। सामान्य वेशधारी चरक ऋषि ने उनसे पूछा कि निरोग कैसे रहेंगे? वैद्यजी का जवाब था जो रोज त्रिफला का सेवन करे। चरक ऋषि को यह सुन कर बड़ी निराशा हुई। कुछ और आगे गए तो वहाँ भी एक वैद्यजी मिले उनसे वही सवाल किया, उनका जवाब था जो नियमित च्वयनप्राश का सेवन करे। ऋषिवर को फिर भी संतोष नहीं हुआ, लगा कि सारा किया धरा चौपट हो गया। यहाँ तो कोई उनके ग्रंथ का अर्थ समझता ही नहीं। जब वे निराश होकर लौटने को थे तो एक वैद्यजी दिखाई दिए। सोचा चलो इनसे पूछा जाए। ये वैद्यजी समझदार निकले- इनका जवाब था-मित भुक, हित भुक और ऋत भुक। अर्थात- जो मिताहारी हो, स्वयं के हित का ध्यान रखते हुए अपना आहार चुने और मौसम के अनुकूल आहार ग्रहण करता हो वह निरोगी है। तो दोस्तो चखो पर चरो मत, चरो तो फरो अर्थात यदि आपने ज्यादा चर लिया है तो फिर उसे चहल कदमी कर पचाइए। और न फरो तो मरो।

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