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मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

सब कुछ लूटा कर ज्यूस पर आए


कुछ लोग भी अजीब होते हैं। प्राकृतिक चिकित्सक कह-कह कर थक जाते हैं। लेकिन लोग अपना ढर्रा नहीं बदलते। उन्हें समझाते हैं कि भाई कुछ न कुछ व्यायाम करो, टहलो या योग करो। मगर फिकर नाट वाले ये लोग जब किसी रोग के चंगुल में फँसते हैं तब उनकी आँखें खुलती हैं। मधुमेह, रक्तचाप, हृदयरोग और जाने किन-किन बीमारियों को गले लगा लेते हैं। डाक्टरों के घर और क्लीनिक के चक्कर में घन चक्कर बन जाते हैं। महँगी-महँगी जाँचे कराते हैं और महँगी-महँगी दवाएँ खाते हैं। फिर डाक्टर कहता है कि दवा के साथ फल, तरकारी और ज्यूस भी लो कुछ पैदल चलो। अरे यही बातें तो उस प्राकृतिक चिकित्सक ने आपसे कही थी। अगर उसकी सलाह तब ही मान ली होती तो आज ये रोग नहीं होते और न इतना पैसा खर्च होता। जाँच पड़ताल के ये पैसे फल तरकारी में काम आते। लेकिन जब तक ठोकर न लगे, अक्ल नहीं आती है। और कई लोग तो ठोकर खाकर भी नहीं सम्हलते। किसी शायर ने कितना अच्छा गीत लिखा है-सब कुछ लूटा के होश में आए तो क्या किया। दिन में अगर चिराग जलाए तो क्या किया। असल में अपने रोगों के जिम्मेदार हम स्वयं हैं। गलत आचार-विहार और आहार से ही सब बीमारियाँ होती हैं। दोष किसी और को देते हैं।

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