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मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

होमियोपैथी पर भरोसा


दुनिया के साठ करोड़ लोगों को होमियोपैथी पर भरोसा है। खबर अच्छी है। क्यों न हो भरोसा, होमियोपैथी है ही ऐसी चिकित्सा पद्धति, अगर ऐलोपैथी की तरह इसे राजकीय संरक्षण मिला होता तो यह आज विश्व की नम्बर वन चिकित्सा पद्धति बन गई होती। होमियोपैथी सस्ती है, सुरक्षित है और अहिंसक है। होमियोपैथी का आविष्कार एक ऐलोपैथ चिकित्सक ने किया था। वे ऐलोपैथी से उब चुके थे। ऐलोपैथी के फलने-फुलने का सबसे बड़ा कारण कमाई। लाखों-करोड़ों रुपए का खेल है। होमियोपैथी में यह मलाई नहीं मिल सकती, इसलिए उसे कोई वह महत्व नहीं मिल रहा है। होमियोपैथी रोगी को स्वस्थ कर देती है, ऐलोपैथी उसे कभी स्वस्थ होने नहीं देती। उलझाए रखती है, ताकि खेल चलता रहे, पैसा मिलता रहे। यही हाल आयुर्वेद का भी बना दिया गया है। ऐलो वालों ने इन पद्धतियों को वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति नाम दिया है, जबकि आयुर्वेद का जन्म वैदिक काल में ही हजारों वर्ष पहले हो चुका था। पिछले दिनों रेडियो और टेलिविजन पर वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के सरकारी विज्ञापन देख सुन कर सुखद आश्चर्य हुआ। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ वरना आज यह हालत नहीं होती। सुना है वर्तमान स्वास्थ्य मंत्रीजी श्री गुलामनबी आजाद इन चिकित्सा पद्धतियों के स्वयं भी कायल हैं। इसलिए वे इन्हें लोकप्रिय बनाने का प्रयास कर रहे हैं। काश कुछ और उनके जैसे नेता होते तो इन पद्धतियों को प्रोत्साहन मिलता और लोक कल्याण होता। इलाज के नाम पर लोगों का लूटना बंद होता । खैर वह सुबह कभी तो आएगी।

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