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सोमवार, 22 नवंबर 2010

विपश्यना के साथ दस दिन


मनुष्य के सारे दुखों का कारण है उसका मन। जब मन में राग द्वेष के विकार जागते हैं, तो व्यक्ति बैचेन हो जाता है। क्रोध जागा तो बैचेन हो गया। स्वयं का नुक्सान तो किया ही परिवार और समाज का भी नुक्सान कर बैठता है। विपश्यना भगवान बुद्ध द्वारा प्रणीत ध्यान की ऐसी जीवनदायिनी विद्या है, जो उसे इन विकारों से तो छुटकारा दिलाती ही है, उसकी मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त कर देती हैं। यह विद्या भारत से लुप्त हो गई थी। श्री सत्यनारायण गोयन्का ने धर्म की इस गंगा को पुनः भारत लाकर वर्तमान युग के भगीरथ की भूमिका अदा की है। गोयन्काजी के प्रयत्नों से आज भारत में करीब ७० केन्द्र स्थापित हो गए हैं, जहाँ दस दिवसीय शिविर में यह विद्या निशुल्क सिखाई जाती है। पूरे विश्व में ११९ विपश्यना केन्द्र हैं। लगभग सभी केन्द्र शहर के कोलाहल से दूर प्रकृति की गोद में बने हैं। भोपाल का धम्मपाल केन्द्र केरवा डेम के समीप पहाड़ियों के बीच बना सुंदर स्थल है।
१० से २१ नवम्बर तक मैंने भी अपने भान्जे सुनील के साथ इस शिविर में भाग लिया। १६ महिलाएं और बाकी पुरुष मिला कर कोई चालीस साधक थे। इससे पूर्व मैं जयपुर केन्द्र पर एक शिविर २००१ में कर चुका हूँ। हर व्यक्ति को धर्म की इस गंगा में एक बार अवश्य डुबकी लगानी चाहिए। पहले शिविर में ही व्यक्ति को इसका महत्व समझ में जाता है। विपश्यना की सहोदर है समता। विपश्यना मनुष्य को समता में रहने की कला सिखाती है। फिर मनुष्य को सुख और दुख को देखने की सम दृष्टि मिल जाती है। उसके छोटे मोटे रोग तो यूं ही दूर हो जाते हैं।
शिविर में हर आयु वर्ग के लोग थे, युवा और विद्यार्थी भी थे तो इंजीनियर, व्यवसायी, सीआईएसएफ के रिटार्यड अधिकारी और कृषक इत्यादि भी थे। सुबह साढ़े चार बजे से रात के नौ बजे तक दस घंटे रोज अलग-अलग सत्र में ध्यान कराया जाता है। एक इंजीनियर ने बताया कि उसका यह दूसरा शिविर है। वह अपनी माँ के साथ शिविर में आया था। उसके पिता भी विपश्यना के अच्छे साधक हैं। विपश्यना करने से उनके परिवार में खुशहाली आई है और कार्यक्षमता में भी निखार गया है। अधिकारी उसके कार्य से प्रसन्न रहते हैं।
एक फ़िल्मकार भी पहली बार अपनी किसी पटकथा के लिए अनुभव लेने चले आये थे। उन्हें देख हमें लगा यह क्या कर पाएगे यह कठिन साधना, दस दिन का मौन और सिगरेट, गुटखा सब बंद। लेकिन वह पूरे दस दिन लगन से बैठे और फिर आने की बात बोल कर बिदा हुए।
शिविर काल में चार दिन हल्की वर्षा भी हुई जिसने माहौल को और खुशनुमा बना दिया था। सुबह शाम रोज सूरज को उदय और अस्त होते देखना हम शहरवासियों को कहाँ नसीब हो पाता है। और एक पत्रकार की तो जाने कितनी शामें दफ्तर में ही शहीद हो जाती हैं। शिविर में विपश्यना के साथ-साथ प्रकृति की गोद में दस दिन गुजारने का सुख बोनस के रूप में मिल जाता है। शिविर से लौटने पर मन प्रसन्न और शरीर ऐसा हल्का महसूस होता है कि पूछिए मत।
-यह चित्र है भोपाल के धम्मपाल केंद्र का। www.vri.dhamma.org यह विपश्यना के इगतपुरी केंद्र की साईट है इस पर लोगोन कर आप चाहे तो विपश्यना के बारे में विस्तार से जानकारी और सभी केन्द्रों के शिविरों का ब्यौरा ले सकते है। ईमेल से ही पंजीयन भी कराया जा सकता है.

2 टिप्‍पणियां:

  1. Agar aap Astrologer hote...
    to me puchhta...
    Sir, Mera aesa time kab aayega, jab me vipashyna shivir me shamil ho payunga...? Ek baar Naidunia me rahte bhi mene aapse baat ki thi...or sunilji se bhi mulakat hui thi...lekin bhagyawash shivir cancel ho gaya tha...

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