बिना गोली के वह मरा
अरे आजकल तो हर बात की गोली निकाल दी है विज्ञान ने। दिल की गोली, दिमाग की गोली, बीपी की गोली, शकर की गोली, दस्त लगे चाहे रूके दोनों की गोलियाँ हाजिर हैं। मैं रोज कटोरी भर गोलियाँ और मग्गा भर दवा लेता हूँ। क्या मजाल कि कोई बीमारी पास फटक जाए। मेरी माँ बीमार पड़ी तो मैंने उसे फोकट में नहीं मरने दिया। मुम्बई तक ले गया। दिल, जिगर, गुर्दे सब बदल डाले। छः महीने तक डाक्टरों ने उसे आईसीयू में रखा। यम के दूतों को भी डर लगता था वहाँ आने में। पूरे ६ लाख़ रूपये खर्च कर डाले।
आजकल तो पुर्जा-पुर्जा नया लग जाए। पैसा खर्च करने की कूबत चाहिए। डाक्टरों के पास हर मर्ज की दवा हाजिर है। फिर हम कमाते किसलिए हैं दवा दारू के लिए ही तो कमाते हैं। परसों पप्पू को दस्त लग गए थे। मैंने डाक्टर से कहा-डाक्टर साहब बाटल चढ़ा दो। दो-तीन बाटल में तो छोरा दौड़ने लगा। वरना लुँज हो गया था।
लोग क्या-क्या नहीं करते, कोई सुबह उठ कर टहलने जाता है। कोई योगा करता है। कोई जिम जाता है। यह मत खाओ, वह मत पीओ। इससे यह हो जाता है, उससे वह रोग हो जाता है। इसलिए तो अपनने सिद्धांत बना लिया- गोली खाओ सबकुछ पचाओ। आजकल गोली नी खाओ तो जिंदा कैसे रहो। हर चीज में तो मिलावट भरी है। तेल, घी, दूध, हवा-पानी क्या शुद्ध बचा? नाते-रिश्ते भी अशुद्ध हो गए। हमारे डाक्टर साहब तो कहते हैं कांहे का परहेज कैसा परहेज? सबकुछ खाओ बस मेरी दवा बंद मत करना।
सही है गोली खाकर मरो..
जवाब देंहटाएंकाश, हम जन्गली होते
जवाब देंहटाएंया तो बीमार नही होते,या हम नही होते...
...ना कपडे चाहिए, ना कूलर, ना स्वेटर, ना चप्पल, न होती शादी...ना होता तलाक...ना होती ८-१० घन्टे की नौकरी...ना होती पैसो की ज़रुरत...ना होते युद्ध...ना होता अमेरिका...ना होता भारत...ना काहू से दोस्ती...ना काहू से बैर...
होती तो सिर्फ़ निद्रा...भोजन और मैथुन...
क्योकि आज पूरा इन्सान तो देखे नही मिलता...अरे ये जीना भी कोई जीना है...पूरे ही जानवर बन जाओ...किसने मना किया है...
पढ़कर ज्ञान एवं सोच की वृद्धि हुई सर... डाक्टर की बाटल और नाते-रिश्ते वाली लाइनें ज्यादा पसंद आई........ धन्यवाद.....
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