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शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2014

आकाश से बातें करता आकाश नीम

हमारे घर के सामने आकाश नीम का एक पेड़ है। अब वह काफी विशाल हो चुका है। सचमुच आकाश से बातें करता नजर आता है। इन दिनों इस पर बहार आई है। अक्टूबर से दिसम्बर के महीने में यह पुष्पित होता है। चार पंखुड़ी वाले सफेद पुष्पों की लंबी डंडियां होती हैं। रात में ये फूल खिलते हैं और सुबह झरने लगते हैं। पेड़ के नीचे फूलों की चादर बिछ जाती है, ठीक वैसे ही जैसे पारिजात की होती है। इन फूलों से चमेली की तरह भीनी-भीनी महक निकलती है। फूलों को अगर एक कांच की छोटी बोतल में पानी भर कर उनकी डंडियों को उनमें डूबो कर रख दिया जाए तो दो दिनों तक आपके कमरे में खुशबू बिखेरते रहते हैं। आकाश नीम को अंग्रेजी में indian cark tree और वनस्पति शास्त्र में millingtonia hortensis के नाम से जाना जाता है। मराठी में इसे कावल नींब या बुचाड़े झाड़ के नाम से जाना जाता है। इसकी लकड़ी से कार्क बनते हैं। यह पेड़ मूल से रूप से बर्मा का है। अंग्रेज वनस्पति शास्त्री थामस मिलिंगटन ने इसे बर्मा से लाकर अन्यत्र भी लगाया। इसलिए उनके नाम पर इसका नाम मिलिंगटोनिया और चूंकि बाग में लगाया था इसलिए हार्टेन्सिस पड़ा। इसके बारे में पारिजात की तरह एक भारतीय पौराणिक कथा भी है। भगवान कृष्ण इसे स्वर्ग से धरती पर लाए थे। इसे कहां लगाएं इस बात पर कृष्ण की रानियों रुक्मणि और सत्यभामा के बीच विवाद होने लगा। कृष्ण ने रुक्मणि के परिसर में इसे इस तरह लगाया कि इसके पुष्प सत्यभामा के आंगन में भी गिरते थे। इस तरह दोनों खुश हो गईं। बहरहाल हमारी गली में इसे कलाकार दिलीप चिंचालकरजी ने लगाया था। आज यह पूरे मोहल्ले में महक बिखेर रहा है। हम दिलीपजी के शुक्रगुजार हैं। पारिजात की तरह इसमें औषधीय गुण भी है। इसके पुष्प खांसी दूर करते हैं। ये ब्रांको डायलेटर की तरह इस्तेमाल किये जाते हैं, फेफड़ों को बल प्रदान करते हैं। इसकी पत्तियों को सूखा कर सिगारेट में तम्बाकू के विकल्प की तरह इस्तेमाल किया जाता है। पारिजात पर इस ब्लाग में पहले आलेख दिया जा चुका है। .

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