कुल पेज दृश्य

रविवार, 15 दिसंबर 2013

दूध और दही से स्नान कीजिए


हम मंदिरों में भगवान की मूर्ति को दूध और दही से स्नान कराते पुजारियों को देखते हैं। यह एक प्रतीक है। असल में यह हमें संकेत देता है कि हमें भी अपने शरीर की त्वचा को स्वस्थ
और स्निग्ध बनाए रखने के लिए दूध और दही से स्नान करना चाहिए। आप कहेंगे इतनी महंगाई में जब दूध पीने को तो नसीब नहीं होता और आप स्नान की सलाह दे रहे हैं। दुग्ध या दही से स्नान में कोई घड़ा भर दूध-दही नहीं लगता। सिर्फ आधा कप दूध या आधा कटोरी दही पर्याप्त है। दुग्ध दही स्नान का मतलब यह कतई नहीं है कि मग्गे से पानी की तरह शरीर पर दूध बेकार बहाया जाए। वैसे तो पानी भी शरीर पर व्यर्थ नहीं बहाना चाहिए। दुग्ध स्नान का वैज्ञानिक तरीका है-दूध को हथेलियों द्वारा शरीर पर तेल की तरह चुपड़ना। इस कार्य में सिर्फ आधा कप दूध से ही पूरे शरीर पर दूध का लेप किया जा सकता है। पूरे शरीर पर दूध चुपड़ने के बाद करीब दस पंद्रह मिनट इसे लगा रहने दीजिए। फिर गुनगुने पानी में नेपकिन भिगो कर पूरे शरीर को भीगे नेपकिन से रगड़ते हुए साफ कर लीजिए। बस यह हो गया दुग्ध स्नान। फिर देखिए आपकी त्वचा कितनी कोमल और चमकदार हो गई है। इसी तरह दही से स्नान किया जा सकता है। शुष्क त्वचा के कारण ठंड के मौसम में जो खुजली चलती है, उसमें  दुग्ध दही स्नान से बड़ा लाभ मिलता है। करके देखिए। हमारे भारतीय दर्शन में कहा गया है आत्मा सो परमात्मा अर्थाथ आत्मा ही परमात्मा या ईश्वर है। आत्मा शरीर में वास करती है। इसलिए यह शरीर परमात्मा का मंदिर है। मंदिर को जैसे हम साफ सुथरा रखते हैं, उसी तरह आत्मा के मंदिर इस शरीर को भी साफ-सुथरा व स्वस्थ्य रखना हर मनुष्य का कर्त्तव्य है। इसीलिए भगवान की मूर्ति को दुग्ध-दही स्नान की परंपरा शुरू हुई होगी। बाजार में मिलने वाला कोई भी महंगा साबुन आपको जो लाभ नहीं दे सकता, वह लाभ आधा कप दूध से किया गया स्नान देगा। अगर समय का अभाव है तो रोज नहीं तो हफ्ते में एक दो दिन भी यह प्रयोग किया जा सकता है। दूध चुपड़ने के बाद पंद्रह मिनट के विरामकाल में आप चाहें तो कपड़े पहन कर दूसरे काम निपटा सकते हैं और बाद में स्नान कर सकते हैं। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें