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शनिवार, 13 जुलाई 2013

आशयजी के दोस्त परिंदे

दिलीपजी ने कब्बू कथा भेजी तो मुझे भी अपने घर की फाख्ता वार्ता लिखने की प्रेरणा मिली। दो माह पहले फाख्ता के एक जोड़े ने हमारे बेडरुम की खिड़की में घोसला बनाया था। जब घोसला तैयार हो गया तो जाहिर है उसमें अंडे दिए। एक अंडा तो नीचे गिर कर फूट गया, लेकिन जो घोसले में बचा था, उसे फाख्ता कईं दिनों तक सेती रही। गर्मी की तेज धूप में भी वह वहां किसी तपस्वी की तरह बैठी रहती। मेरा पोता आशय उसे बाजरे के दानों का चुग्गा डालता। उसे बड़ी चाह थी कि उसके बच्चे को देखे। लेकिन जब काफी दिनों बाद भी अंडे से चूजा नहीं निकला तो फाख्ता उस अंडे को वहीं छोड़ कर उड़ गई। इसबीच आशयजी को भी नानी के घर जाना पड़ा।
अब फाख्ता ने हमारे घर के पीछे वाले घर की खिड़की में नीड़ का फिर निर्माण किया। वहां भी अंडे दिए, उसमें से समय पर एक चूजा निकला। आशय चूंकि नानी के यहां था, इसलिए हमने उस फाख्ता के बच्चे की तस्वीर

कैमरे में कैद कर ली ताकि आशय को लौटने पर दिखा सकें। आशय को परिंदों से बड़ा प्रेम है। वह कईं बार भगवान से प्रार्थना करता रहता है कि अगले जन्म में परिंदा बनाए। हमारी गैलरी में उसने परिंदों के लिए एक मिट्टी के सकोरे में पानी भर कर रखा है। मम्मी-पापा के साथ बाजार से बाजरा खरीद कर लाया। वह रोज सकोरे का पानी बदलता है और बाजरे के दानों का चुग्गा वहां रखता है। दिन में दो-तीन बार
 फाख्ता का जोड़ा रोज वहां आकर चुग्गा चुगता है। पास में अशोक के दो विशाल दरख्त हैं, उनमें भी
उनका एक घोसला बना हुआ है। एक दिन मैंने देखा कि फाख्ता के जोड़े के साथ एक बच्चा भी दाना चुगने आया। तीनों मजे से दाना चुगते रहे। देखते-देखते सारा चुग्गा साफ कर डाला। पहले उनके दाना चुगते समय अगर हम दरवाजा खोल कर गैलरी में आते तो वे उड़ जाते थे। लेकिन कुछ दिनों बाद जब उन्हें लगा कि कोई खतरा नहीं है तो वे हमारे सामने भी चुग्गा चुगने लगे। आशयजी को यह सब देख बड़ा मजा आता है। चुग्गा खत्म होने पर वह तुरंत और बाजरा डाल देता। अब आशयजी की उन परिंदो से दोस्ती हो गई है। दिलीपजी के घर जाकर कब्बू को भी उसने देखा तो बड़ा प्रसन्न हुआ। परिंदों के प्रति उसका लगाव देख कर दिलीपजी ने एक परिंदों वाली पुस्तक उसे भेंट की और कहा इसमें देख-देख कर परिंदों को पहचानना सीखो। मेरे साथ शाम को जब मोदी वन रैना को घुमाने चलोगे तो मुझे बताना कि किस परिंदे का क्या नाम है। रैना दिलीपजी की पेट अल्सेशियन डाग है। उनका कब्बू भी रैना के साथ निर्भिक खेलता रहता है। कभी-कभी तो उस पर सवारी भी कर लेता है।


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