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मंगलवार, 21 अगस्त 2012

हाथीचाक- पत्ते पत्ते में छुपे हैं एंटीऑक्सिडेंट

आर्टिचाक एक बड़ा और अनूठा कंद है, जो 3000 वर्ष से प्रयोग में लिया जा रहा है। इसका इतिहास बहुत पुराना है। इसकी उत्पत्ति यूरोप के भूमध्य रेखीय संभाग से हुई हैमिस्र के प्राचीन दस्तावेजों में भी इसका जिक्र मिलता है, जिनमें इसे त्याग और पुरुषत्व का प्रतीक माना गया है। यह थिसिल प्रजाति का सदस्य है। इसका वानस्पतिक नाम सायनारा स्कोलिमस Cynara scolymus है, जो लेटिन शब्द canina (जिसका मतलब है canine) और ग्रीक शब्द skolymos (जिसका मतलब है thistle) से बना है। 15 वीं शताब्दी में यह ब्रिटेन पहुँचा, जहाँ इसे आर्टिचोक नाम दिया गया। आज अमेरिका में इसका सबसे अधिक उत्पादन कैलीफोर्निया में होता है। भारत में इसकी खेती शायद बहुत ही कम होती है। डॉ.योहना बुडविग ने अपने कैंसर उपचार में इसके प्रयोग की विशेषतौर पर सलाह दी है।  
  इसकी कई किस्में जैसे ग्रीन ग्लोब, डेजर्ट ग्लोब, बिग हार्ट और इंपीरियल स्टार आदि। इसकी कांटेदार पत्तियां हरे रंग की होती हैं और अंदर का हृदय या गूदा हल्के हरे रंग का होता है। इसकी पत्तियां और गूदा दोनों ही खाये जाते हैं। लेकिन कुछ लोग गूदा पसन्द करते हैं, तो कुछ पत्तियां खाना पसन्द करते हैं। यह देखने में कांटेदार, स्वाद में मजेदार और सेहत में दमदार है।
सन् 2004 में अमेरिका के कृषि विभाग ने बड़े स्तर पर विभिऩ्न भोज्य पदार्थों में एंटीऑक्सीडेंट्स के विश्लेषण हेतु अध्ययन करवाया था। अचरज की बात यह रही कि एंटीऑक्सीडेंट्स की दृष्टि से हाथीचाक ने सर्वश्रेष्ठ सात भोज्य पदार्थों में स्थान बनाया और सब्जियों की श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ चार में स्थान प्राप्त किया। ब्लूबेरी, रेडवाइन, ग्रीन टी भी पीछे रह गये।

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