अक्टूबर से मार्च तक अमृतफल आँवला हमारा साथ निभाता है, जब आँवलों की बिदाई होने लगती है, तो बेलफल हमारे स्वागत में हाजिर हो जाता है। कुदरत हमारा कितना ख्याल रखती है। एक हम हैं कि कुदरत का जरा भी ख्याल नहीं रख पाते। मार्च से सूरज का तेज बढ़ना शुरू होता है, इस तपीश का मुकाबला करने के लिए कुदरत हमें एक से बढ़ कर एक फल पेश करती है। अंगूर और संतरों की बहार आ जाती है। तरबूज-खरबूज भी आने लगते हैं। आम के साथ-साथ बेल भी पेड़ों पर पकने लगते हैं। बेल का वैसे तो पूरा वृक्ष ही किसी न किसी औषधि गुण से भरपूर होता है। यहाँ हम चर्चा करते हैं बेलफल की। यह मार्च से जून तक आपका साथ देगा। रोज इसके शरबत का सेवन करो तो कईं फायदे हैं। आयुर्वेद के ग्रंथों में इसके गुणों के कईं सफे भरे पड़े हैं।
-यह हृदयबलकारी है, अर्थात हृदय को ताकत प्रदान करता है। सीधे से कहें तो हृदय का टानिक है।
-नाड़ी तंत्र की उत्तेजना को शांत करता है।
-मधुमेह के रोगियों का हितैषी है, क्योंकि यह शर्करा कम करता है।
-यह सारक है अर्थात पेट साफ करता है, मतलब कब्ज का कब्जा छुड़ाता है।
-पाचक है और जठराग्नि को प्रदीप्त करता है।
-खाँसी, कफ और वात का शमन करता है।
-शरीर में किसी प्रकार का शोथ अर्थात सूजन हो तो उसे दूर करता है।
-रक्तस्राव को रोकता है, खूनी बवासीर वालों के लिए तो रामबाण है।
-यह ज्वरहर(बुखार मिटाने वाला), गर्भाशय शोधक, अनिंद्रानाशक है और मानसिक विकृतियों को भी दूर करता है।
-दस्त रोकता है, पेचिश, अतिसार, संग्रहिणी आदि उदररोगों में भी मुफीद है।
-मूत्रदाह में भी उपयोगी है, पेशाब की जलन दूर करता है।
तो फिर देर मत कीजिए ले आइए बेल और रोज पीजिए शरबत। बनाना बड़ा आसान है। एक पका बेल नारियल की तरह फोड़ कर उसके गुदे को निकाल लें। फिर इसे कुछ देर पानी में गला कर रख दें। गल जाने पर हाथ से मसल कर छननी से छान लें ताकि बीज और रेशे निकल जाएं। अब इसमे स्वाद अनुसार थोड़ा काला नमक, इलायची मिला लें। अगर अधिक मीठा चाहते हैं तो शहद या गुड़ मिला लें। अन्यथा ऐसे ही पियें, क्योंकि बेल में स्वाभाविक मिठास होती है।
बाबा निरोगी मरने से पहले कह कर गये थे....
जवाब देंहटाएंग्यारह तुलसी पत्र जो, स्याह मिर्च संग चार।
तो मलेरिया इकतारा, मिटे सभी विकार।