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सोमवार, 30 जनवरी 2012

संवाद नगर के सदाबहार झरने

हमारी कालोनी है तो छोटी सी मगर है बड़ी निराली। कुल जमा पचास-पचपन बंगले हैं। इसका नाम संवाद नगर इसलिए पड़ा क्योंकि पैदाइशीतौर पर यह पत्रकारों की बस्ती है। यह बात और है कि अब यहाँ पत्रकार गिने चुने ही बचे। बाकी सब बंगला बेच कर मुनाफा अंटी कर बढ़ लिए। यहाँ हरियाली बहुत है, पास में प्राचीनकाल का कैदी बाग है। अब इसका नामोनिशां मिट चुका है। न कोई कैदी यहाँ श्रमदान के लिए आते हैं और बाग भी उजड़ चुका है। उसे अब चिड़ियाघर वालों ने हथिया लिया। खैर अच्छा ही हुआ वरना अनेक बिल्डरों की इस पर नजरें थी। अगर उनके हाथ चढ़ जाता तो यहाँ भी मल्टियाँ तन जाती। जैसे कैदी बाग के सामने मोदी की जमींन पर तन चुकी हैं। इस जगह पर बड़े-बड़े नीम और जामुन के दरख्त थे। मुझे याद है जब हम आर्टस एण्ड कामर्स कालेज में १९७० में पढ़ते थे, तो पीरियड खाली होने पर यहाँ पैदल घूमने चले आते थे। जामुन के दिनों में पेड़ों के नीचे से जामुन बीन कर खाते थे। कैदी बाग में तब कैदी श्रमदान करते नजर आते थे। जब आम की बहार आती तो कैदी बाग में आम और अधपके साग बिकते थे। हिरण, खरगोश और मोर नाचते दिख जाते थे। तब रात को यहाँ आने में डर लगता था। पुल के पास विशाल बरगद था, वैसे तो अब भी है। मगर अब इसका दो हिस्सों में विभाजन हो चुका है। आधा संवाद नगर में है, जिस पर वलीशाह बाबा के खादिमों का डेरा है। आधा सड़क के उस पार चिड़िया घर की चारदीवारी में चला गया है।



बड़ का एक विशाल दरख्त नौलखा चौराहे पर भी था। उसके निकट एक प्याऊ थी। लोग बरगद की छाया में आराम से बैठते और प्याऊ का ठंडा पानी पीते थे। चूंकि यहाँ से बाम्बे-आगरा रोड गुजरता है, इसलिए लोग यहाँ बैठ कर बसों का इंतजार भी करते थे। अब न तो वह बरगद है न वह प्याऊ। कहते हैं इस इलाके में नौलाख पेड़ थे, इसीलिए इसका नाम नौलखा पड़ा। मल्टी निर्माण में सारे विशाल दरख्तों की बलि चढ़ गई। उन दरख्तों से जामुन और इमली बरसती थी, जिसे बच्चे खाते थे। अब मल्टियों से कचरे की उल्टी होती है और पन्नी बिनने वाले बच्चे उसमें से पन्नियाँ उठा कर ले जाते हैं। इसके सामने की जमींन पर बिल्डिंग मटेरियल वालों का कब्जा हो गया है। ईंट, गिट्टी और रेत के ढेर लगे हैं। वैसे इसे नौलखा चौराहा कहने की अपेक्षा पंचराहा कहना ज्यादा सही होगा। यहाँ पाँच रास्ते जो मिलते हैं। पाँच रास्तों से आने वाले सैकड़ों चौपाया और दुपाया वाहनों में अक्सर भिड़ंत होती रहती है। दिन में कईं-कईं दफा जाम लगता है। पहले कैदी बाग के पेड़ो पर जाम(अमरूद) लगते थे, अब सड़कों पर जाम लगते हैं।


तो मैं बात कर रहा था संवाद नगर के सदाबहार झरनों की और खो गया पुरानी यादों में। हमारे सामने वाली लाइन में एक मल्टी, एक अदद उजाड़ बाग और पाँच बंगले हैं। अतिक्रमण की होड़ के चलते सड़क पतली सी गलीनुमा रह गई है। पहले यह कच्ची थी, फिर इस पर डामर चढ़ा और बाद में सीमेंटीकरण हो गया। असल में झरने इन सामने के मकानों से फूटते रहते हैं। कभी-कभी हमारे आजूबाजू के मकानों से भी फूटते हैं। कभी किसी अंकल की कार नर्मदा स्नान करती है तो कभी किसी की बाइक। और स्नान के दौरान कल-कल करता नर्मदा मैया का जल सीमेंट की सड़क पर सरपट दौड़ता है। कई बार मोदीजी के घर के सामने जाकर तालाब की शकल ले लेता है। जब दिलीपजी अपने डागी को मोदी वन भ्रमण को ले जाते हैं, तो तालाब मार्ग में बाधक बन जाता है। ऐसी हालत में दिलीपजी अपने दुपहिया स्कूटर पर चौपाया को बिठा कर तालाब को इस आधुनिक नौका से पार करते हैं। और डागी के चरणों को कीचड़ से बचाते हैं। हमारे सामने के एक अंकल सड़क पर पानी के प्रेशर से झाड़ू लगाते हैं। अपने घर का कचरा जब बहता हुआ पड़ोसी के आँगन तक जा पहुँचता है तो वहाँ भी प्रेशर झाड़ू चला कर कचरे को बगीचे के सामने ले जाकर छोड़ देते हैं। उन्हें मालूम है कि बगीचा तो कुछ बोलेगा नहीं, मगर पड़ोसी की दहाड़ काफी तगड़ी है। जब कभी नर्मदा मैया की धमनियाँ जेसीबी के जबड़े से कट जाती हैं और नलों से पानी रुठ जाता है, तो भी इन झरनों की निर्झर बंद नहीं होती। तब ये लोग धरती मैया के पेट से पंप द्वारा पानी खींच कर झरना बहाते हैं। तिंझाफाल और पातालपानी के झरने भले ही सूख जाएं हमारे संवादनगर के झरने सदाबहते रहते हैं।

3 टिप्‍पणियां:

  1. हम तो समझे थे कि वो बात करेंगे संवादो के झरने की । आजकल कौन कर पाता है? परंतु कैदी बदल गए हैं। बाग वही हैं काम नहीं है । पहले रात मे वहाँ से गुजरना साहस था अब वहाँ पर रहना दुस्साहस है।
    हम तो केवल अगली पीढ़ियों को तैयार कर रहे हैं ताकि हमे कोसे। हम तब नही होंगे यही सुख है।
    हमे अपने कुत्तो की चिन्ता है बच्चों के लिए झरने बहा ही रहे हैं।

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  2. Hamari line ke aalava samvad nagar ke andar bhi isi tarah ke kai Jharne bahte hain. Sadak aur Vahan ko nahlane main Inhe alag tarha ka sukh milta ho...

    - SAMAY

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  3. पहले कैदी बाग के पेड़ो पर जाम(अमरूद) लगते थे, अब सड़कों पर जाम लगते हैं .... पास ही जाम का भी आहाता हैं ... जो रात के समय गुलजार हो उठता हैं .... बड़ा ही सुन्दर विकास हो रहा हैं शहर का .... ऐसे झरने सभी जगह बह रहे हैं हर कालोनी में बहने लगे हैं ... कचरा पानी से भी साफ हो जाता हैं ... इस युग की नयी इजाद हैं ...

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