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सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

आशयजी के चुटकुले


आशय मेरा छः वर्षीय पौत्र है। बड़ा चपल और चतुर बालक है। रोज सबेरे अखबार पढ़ते समय वह भी मेरे साथ अखबार देखता है। एक दिन निजी पृष्ठ पर निधन और उठावने की सूचनाएं और चित्र देख कर उसने पूछा दादा इनको क्या हो गया। इनका फोटो क्यों छपा है। मैंने कहा-इनका निधन हो गया। यह निधन क्या होता है। मैंने कहा-ये मर गए हैं अब इस दुनिया में नहीं रहे। दूसरे दिन उसने देखा कि निजी कालम में एक व्यक्ति के फोटो चार-चार जगह छपे हैं। वह तपाक से बोला दादा, देखो यह आदमी चार जगह मर गया।
मच्छर क्यों बनायाः एक दिन टीवी देखते समय उसे मच्छर काट रहे थे। वह मच्छरों को मारने लगा। मैंने कहा-मारो मत पाप लगेगा। मरने पर भगवान पूछेंगे तुमने मच्छर मारे चलो नर्क में जाओ। वह बोला मच्छर मुझे काटेगा तो मैं तो उसे मारुंगा। भगवान से कहूँगा कि आपने ऐसा प्राणी बनाया ही क्यों।
मकड़ी और मच्छरः एक दिन उसने मेरे बाथरुम में मकड़ी का बड़ा सा जाला देख कर सवाल किया दादा आप इसे निकालते क्यों नहीं। मैंने कहा-मकड़ी के जाले में मच्छर फँस जाते हैं और मकड़ी उन्हें खा जाती है। हम मच्छर मारने के पाप से बच जाते हैं। वह बोला- दादा यह तो बहुत अच्छा आइडिया है। भगवान पूछेंगे तो बता देंगे हमने नहीं मारा मच्छर को आपकी मकड़ी ने ही मारा है।
मैं गरीब नहींः एक दिन आशयजी मम्मी को परेशान कर रहे थे। मम्मी ने कहा-बड़ा अजीबो गरीब लड़का है। आशयजी ने तपाक से कहा- मैं गरीब नहीं हूँ, मैं गरीब नहीं हूँ। अब तो संयुक्त राष्ट्र की रपट भी कहती है कि भारत में गरीब घट रहे हैं। तो आशयजी क्या गलत कहते हैं।
तस्वीर क्यों नहीं बनतीः आशयजी के चाचा नमनजी के बचपन का चुटकुला है। एक दिन दूरदर्शन पर चित्रहार में तलत महमूद का गीत बज रहा था-तस्वीर बनाता हूँ, तस्वीर नहीं बनती, तस्वीर नहीं बनती। नमनजी ने पूछा-पापा इतना बड़ा हो गया यह आदमी फिर भी तस्वीर नहीं बनती इससे। मैं तो बड़ी आसानी से बना लेता हूँ।
हेमलता बड़ेः उन दिनों नगर निगम के चुनाव चल रहे थे। मोहल्ले-मोहल्ले में दीवारों पर उम्मीदवारों के नाम बड़े-बड़े अक्षरों में लिखे थे। एक मोहल्ले से गुजरे तो दीवार पर हेमलता बड़े देख कर नमनजी ने फरमाईश की पापा हेमलता बड़े खाना है। वे आलूबड़े, दही बड़े और मक्खन बड़े की तर्ज पर हेमलता बड़े को भी खाने की चीज समझ रहे थे।
झापट खाने की जिदः भतीजे समय के बचपन का एक बहुत ही मजेदार किस्सा है। समयजी की शरारत से तंग आकर मम्मीजी ने कहा-सीधा बैठ नहीं तो झापट खाएगा। अब समयजी झापट खाने की जिद करने लगे। चाचा ने उन्हें दूकान से चिक्की लाकर दी और कहा-ले ये रही झापट। और समयजी को झापट बड़ी पसंद आई।
लक्स से धुलती हैः मेरे मित्र के बालक ने एक दिन उन्हें एक बस दिखाते हुए कहा- डैडी यह बस लक्स से धुलती है। डैडी ने पूछा तुझे कैसे मालूम? वह बड़े भोलेपन से बोला- इस पर लिखा है डिलक्स।
दादा मुझे दिखता हैः उनके बचपन का एक मजेदार किस्सा है। एक दिन वह दादाजी के साथ बाजार गए। दादाजी उन्हें पैदल ले जा रहे थे और वह गोद में बैठना चाहते थे। अचानक बोले दादा मुझे दिखता नहीं, मैं गिर पड़ूंगा। दादाजी समझ गए चालाकी और गोद में उठा लिया। थोड़ा आगे चले तो रास्ते में आम वाला नजर आया। चिंटूजी को आम बहुत पसंद थे। अब क्या करते, फौरन बोले दादा मुझे दिखने लग गया।

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