सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामय। अगर हम एक आदर्श जीवनशैली अपना लें, तो रोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। मैंने अपने कुछ अनुभूत प्रयोग यहां पेश करने की कोशिश की है। जिसे अपना कर आप भी स्वयं को चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं। सुझावों का सदैव स्वागत है, कोई त्रुटि हो तो उसकी तरफ भी ध्यान दिलाइए। ईमेल-suresh.tamrakar01@gmail.com
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गुरुवार, 10 मार्च 2011
जड़ों का इलाज जरूरी
दो दिन पहले राज्यसभा में मनोनीत सदस्य एचके दुआ ने एक चौकाने वाली जानकारी दी कि पंजाब में रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते प्रयोग से कैंसर रोग पनप रहा है। पंजाब से रोज सौ लोग राजस्थान के बीकानेर स्थित कैंसर संस्थान में इलाज के लिए एक ट्रेन से जाते हैं। लोगों ने इस ट्रेन का नाम ही कैंसर एक्सप्रेस रख दिया है। उन्होंने चिंता यह जताई थी कि पंजाब में कोई अच्छा कैंसर अस्पताल नहीं है। अगर खुल जाए तो लोगों को यहीं इलाज की सुविधा हो जाए। राजस्थान नहीं जाना पड़े। दुआजी की चिंता वाजिब है। लेकिन अस्पताल खुलना समस्या का निदान नहीं है। इलाज की सुविधा तो हो जाएगी इससे कैंसर तो नहीं रूकेगा। कैंसर को रोकना है, तो पहले रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल रुकवाइये। ये उपयोग करने वाले किसानों की यह दशा कर रहे हैं तो, जरा सोचिए अनाज में मिल कर यह हमारे शरीर में क्या-क्या रोग पैदा नहीं कर रहे होंगे। कैंसर को रोकना है, तो हमें अपनी पारंपरिक खेती पर लौटना होगा। जैविक खेती की ओर फिर से कदम बढ़ाने होगे। तब ही इन महामारियों से छुटकारा मिलेगा। अस्पताल तो आप एक दो नहीं पचास-सौ खोल दें, उससे कुछ होने वाला नहीं है। उल्टे रोग और रोगी बढ़ते जाएंगे। रासायनिक खाद और कीटनाशक के बढ़ते प्रयोग ने मिट्टी, पानी, अन्न सब कुछ प्रदूषित कर दिया है। खेती को लाभ की जगह घाटे का धंधा बना दिया है। संकट में फँसे किसान भाई को आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया है। इतना सब होने के बाद भी क्या हम इस खेती से चिपके रहेंगे।
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बिल्कुल आवश्यक है. जैसी जड़ होगी पैसा पौधा और फिर वैसा ही खाने वाला..
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