सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामय। अगर हम एक आदर्श जीवनशैली अपना लें, तो रोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। मैंने अपने कुछ अनुभूत प्रयोग यहां पेश करने की कोशिश की है। जिसे अपना कर आप भी स्वयं को चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं। सुझावों का सदैव स्वागत है, कोई त्रुटि हो तो उसकी तरफ भी ध्यान दिलाइए। ईमेल-suresh.tamrakar01@gmail.com
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गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011
संत जैसा संतरा
संतरा जिसे कुछ लोग नारंगी कहते हैं और अंगरेजी में आरेंज। यह गुणों में एकदम संत समान है। विटामिन सी से भरपूर है। गर्मी के दिनों में तरावट पहुँचाता है। कुदरत कितनी मेहरबान है हम पर। गर्मी देती है तो गर्मी से रक्षा के लिए संतरे, अंगूर, तरबूज, फालसा, शहतूत जैसे मीठे, मधुर व तरावटी फल भी देती है। लेकिन हम कितने नादान हैं, कुदरत की इस अनूठी देने की उपेक्षा कर मनुष्य द्वारा फितरत से बनी कृत्रिम चीजें कचोरी, समोसा, आलूबड़ा और दूध के सब तत्व खोने के बाद बने खोया की मिठाइयों पर मोहित हैं। अगर कोई इस मौसम भर, रोज एक या दो संतरे सुबह-सुबह खाली पेट खाए तो वह कई रोगों से बच सकता है। कुछ लोग संतरे का झीना छिलका फेंक देते हैं। ऐसा कर वे अपना नुक्सान करते हैं, इन छिलकों और रेशों में भी विटामिन और केल्शियम होता है। संतरे की फाँक मुँह में दबा कर धीरे-धीरे चूसिए और केवल बीज थूकते जाइए। इनका पतला आवरण और रेशे में जो पल्प है वह आपकी आँतों में चिपके मल की सफाई करता है। संतरे के उपर के हरे-पीले छिलकों को भी मत फेंकिए। इन्हें धूप में सुखा कर और कूट कर उबटन बनाइए। इस उबटन से नहाने पर त्वचा की रंगत निखरती है और त्वचा चिकनी और मुलायम हो जाती है। कहिए है न संतरा संत समान? संत किसी का बुरा नहीं चाहता संतरा भी नहीं चाहता। इसे नारंगी मत कहिए वरना कबीरदासजी रो देंगे। उनका दोहा आपने भी पढ़ा ही होगा रंगी को नारंगी कहे देख कबीरा रोया।
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बहुत अच्छा लगता है...
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